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________________ एस धम्मो सनंतनो तो सुख होगा। आशा के कारण, जीवन ही दुख है, ऐसा नहीं लग पाता। आशा बचाए रखती है। आशा बड़ा संरक्षण देती है जीवन को। अनुभव तो कहता है, दुख ही दुख है। आशा कहती है, ठहरो, इतने जल्दी निर्णय मत लो, अभी तो जीवन बाकी है। आज तक नहीं हुआ तो ऐसा थोड़े ही है कि कल भी नहीं होगा। अब तक असफलता मिली तो कल सफलता मिलेगी। देखो, मोहम्मद गजनी आया, सत्रह दफे हार गया, अठारहवीं दफे जीत गया। आदमी हार जाता है; हिम्मत रखो, धीरज रखो, लड़ते रहो, जूझते रहो; आज हारे, कल जीतोगे; जीत भी होती है, घबड़ाओ मत। आशा खींचे लिए जाती है। और आशा हमारी सदा अनुभव पर जीत जाती है। यही हमारा दुख है, यही हमारी पीड़ा है, यही हमारा उपद्रव है, यही हमारी मूर्छा है। ___मुल्ला नसरुद्दीन पत्नी से परेशान था। कितनी बार नहीं सोचा कि यह मर जाए। बहुत कम पति होंगे जो नहीं सोचते। पत्नियां शायद इतना साफ-साफ नहीं भी सोचतीं। सोचती तो वे भी हैं, उनका सोचना जरा धुंधला-धुंधला होता है। कौन नहीं सोचता, संग-साथ भारी पड़ने लगता है। तो मुल्ला कई बार सोच चुका, कई बार तो योजना भी बना लेता था कि मार ही डालूं, लेकिन फिर डर लगता कि अदालत, यह, वह, झंझट में पडूंगा। फिर पत्नी मर भी गयी। संयोग की बात। तो पत्नी के मरने पर उसने मित्रों से घोषणा की कि अब कभी दुबारा विवाह न करूंगा। लेकिन तीन महीने बाद वह फिर लड़की की तलाश करने लगा। तो मित्रों ने कहा, पागल हुए हो, भूल गए, तीन महीने पहले क्या कहा था? उसने कहा, छोड़ो जी, जाने भी दो, आशा अनुभव पर जीत रही है। सभी स्त्रियां थोड़े ही वैसी होंगी। एक से गड़बड़ हो गयी तो सभी से थोड़े ही गड़बड़ हो जाएगी। बुरी स्त्रियां होती हैं, अच्छी स्त्रियां भी होती हैं। एक बार भूल-चूक में पड़ गए थे, अब दुबारा कदम सम्हालकर रखेंगे। . ऐसे आशा समझाए चली जाती है। दुबारा भी वही होगा। दूसरी स्त्री से भी वही होगा। दूसरे पति से भी वही होगा। इस जन्म में जो हुआ, अगले जन्म में भी वही होगा। लेकिन मन कहेगा, कोई तो रास्ता होगा, कहीं तो उपाय होगा निकल जाने का! अनुभव है अतीत में और आशा है भविष्य में। भविष्य की आशा अतीत के अनुभव पर जीतती चली जाती है और संरक्षित करती रहती है। इसलिए जीवन ही दुख है, ऐसा तुम्हें दिखायी नहीं पड़ता। ___ अगर ठीक से देखोगे, तो बुद्ध ने जो कहा है, वह अतिशयोक्ति नहीं, सत्य का सीधा-सीधा निरूपण है। यों तो सारा शहर पड़ा है पर रहने की जगह नहीं है नाप रहे नभ की सीमाएं 242
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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