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________________ एस धम्मो सनंतनो संत ने कहा, फिर तू कहीं और जा, क्योंकि तर्कयुक्त तो कोई प्रमाण नहीं है। न प्रेम के लिए कोई तर्कयुक्त प्रमाण है, न प्रार्थना के लिए कोई तर्कयुक्त प्रमाण है, न परमात्मा के लिए कोई तर्कयुक्त प्रमाण है। प्रमाण जरूर है, लेकिन प्रमाण भगवान का भक्त की आंख में है। भगवान को खोजना हो तो भक्त की आंख में। उपनिषदों के ऋषि बैठे हैं छोटे से समूह के पास, बड़ा आत्मीय नाता है। उस आत्मीय नाते में कुछ-कुछ लेन-देन हो जाता है; कभी-कभी बोल जाते हैं। इसलिए उपनिषदों के सूत्र एक-दूसरे से जुड़े भी मालूम नहीं होते। क्योंकि बीच-बीच में जो सेतु है, वह मौन का है। छोटे-छोटे हैं उपनिषद। आत्म-पूजा उपनिषद है, एक पोस्टकार्ड पर लिखा जा सकता है। वर्षों में पैदा हुआ होगा। और कभी-कभी तो ऐसा हुआ है कि एक उपनिषद एक आदमी से पैदा नहीं हुआ, अनेक ऋषियों से पैदा हुआ। एक गुरु कुछ कहकर मर गया, फिर उसके शिष्यों में कोई गुरु हो गया, उसने कुछ कहा, वह भी जुड़ गया। फिर उसके शिष्य ने कुछ कहा, वह जुड़ गया। ऐसे एक उपनिषद पैदा हुआ। एक आदमी के हाथ का बनाया चित्र भी नहीं है। लेकिन जिन्होंने बनाया है, एक ही चैतन्य की दशा में बनाया, इसलिए भिन्न भी नहीं है, अलग-अलग ने बनाया, यह कहना भी ठीक नहीं है। एक ने बनाया, यह कहना भी ठीक नहीं है। ये बड़ी और तरह की कृतियां हैं। इस देश का सौभाग्य है। जैसे आज पश्चिम विज्ञान के अर्थों में सौभाग्यशाली है, वैसा यह देश धर्म के अर्थों में सौभाग्यशाली रहा है। हजारों साल की हवा के बाद कहीं ऐसी घड़ियां आती हैं जब हम उन ऊंचाइयों पर आंखें उठा सकें, उन शिखरों को देख सकें जो बादलों के पार हैं। . बुद्ध की महाकरुणा को देखने के लिए तुम्हें समझना पड़ेगा। नहीं तो यह तो बात सीधी-साफ समझ में आती है कि अगर यह औरत अपने बच्चे के मरने के बाद जीसस के पास गयी होती तो जीसस ने उसे जिला दिया होता। तुम भी कहते कि यह करुणा हुई। यह बुद्ध ने क्या कहा कि सरसों के बीज ले आ, कि सरसों ले आ! यह क्या बात हुई! कुछ कर सकते हो तो कर देते। बुद्ध ने भी कुछ किया। बुद्ध का किया बहुत बड़ा है। बेटा जी जाता तो बीस साल बाद मरता, पचास साल बाद मरता कि सौ साल बाद मरता, मरता तो। तो जो घटना घट गयी थी, वह सौ साल के लिए टल जाती और क्या होता? सौ साल का मूल्य क्या है इस अनंत समय के प्रवाह में? ऐसे पल जैसे बीत जाते हैं सौ साल। तुममें से कोई पचास साल का है, कोई तीस साल का है, कोई चालीस साल का, कोई साठ साल का, कैसे बीत गए? ऐसे बीत गए। ऐसे वे सौ साल भी बीत जाते। फिर बेटा मरता, और बेटे के मरने के पहले यह मां मर जाती; और बुद्ध जैसे आदमी का साथ मिला और अमृत की कोई खबर न मिलती-तो यह करुणा न होती। बुद्ध ने बड़ी करुणा की, महाकरुणा की। बुद्ध ने कहा, तू जा, पता लगाकर 240
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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