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तृष्णा का स्वभाव अतृप्ति है
चुपचाप बैठा-बैठा एक दिन कहता है - तत्वमसि । तुम वही हो ।
अब पश्चिम में जब इसका अनुवाद हुआ तो यह बात जरा बेबूझ लगती है कि तुम वही हो ! आदमी होश में है कि पागल है ? किससे कह रहे हो, कौन सी बात कर रहे हो ? कौन कौन है? तुम वही हो !
यह बड़े मौन के लंबे प्रयोग के बाद कही गयी बात है, जब शिष्य उस जगह आ गया है जहां संसार समाप्त होता है, ब्रह्म शुरू होता है । वह शुरू होता है। इस घड़ी में गुरु उसे चेताता है - तत्वमसि । तुम वही हो । वह उससे कहता है, घबड़ा मत, यह जो घट रहा है, यह तू ही है । यह तेरा ही विराट रूप है। तू भिन्न नहीं है, जा, उतर जा । वह नदी से कह रहा है, डर मत, यह सागर तेरा ही है, उतर जा, तत्वमसि ।
अब यहां अगर वह कहे कि चोरी मत करो, पर-स्त्रीगमन मत करो, तो वह शिष्य कहेगा, आप किसके साथ सिर भिड़ा रहे हैं! कहां की पर- स्त्री ? यहां अपनी स्त्री नहीं है, तो पर- स्त्री कहां है? पहले तो स्व- स्त्री होनी चाहिए, तब पर- स्त्री होती है। इससे कहो कि देखो, झूठ मत बोलना, चोरी मत करना - ये सब बेमानी बातें हैं, इनका कोई अर्थ नहीं। इस परम शिखर पर तो तत्वमसि का ही उदघोष हो सकता है— कि अहं ब्रह्मास्मि, कि मैं ब्रह्म हूं ।
जब ऐसे वचनों का अनुवाद होने लगा तो उन्होंने कहा, ये शास्त्र तो धार्मिक नहीं हो सकते! इनमें आदमी को धार्मिक बनाने के लिए कोई उपदेश ही नहीं हैं ! इनमें तो उदघोषणाएं हैं। और उदघोषणाओं के लिए भी कोई प्रमाण नहीं है, तर्क नहीं है। अहं ब्रह्मास्मि कह दिया, बात खतम हो गयी। गुरु ने कह दिया कि मैं ब्रह्म हूं, फिर न तो कोई शिष्य यह पूछता है कि आप ऐसा क्यों कहते ? इसका प्रमाण क्या ?
मैं कल एक घटना पढ़ रहा था। एक संत अपने दस-पांच शिष्यों के साथ बैठे हैं। मौन का आनंद चल रहा है। संत भी चुप हैं, शिष्य भी चुप हैं। एक अजनबी आकर खड़ा होकर यह सब देख रहा है । वह एक तर्कशास्त्री है । उसको ईश्वर पर भरोसा नहीं है। वह आया ही इसलिए है कि लोगों ने कहा, यहां एक संत का वास है, तो वह आया ही इसलिए है पूछने कि ईश्वर के लिए प्रमाण क्या है ? भगवान के लिए प्रमाण क्या है ? यहां चुप्पी चल रही है !
मगर उससे न रहा गया। थोड़ी देर तो उसने देखा, उसने कहा कि भई, यह मेरे बरदाश्त के बाहर है। कुछ बातचीत हो, कुछ मतलब की बात हो, यह क्या गैर- मतलब चुप बैठे हैं! तो उस संत ने उसकी तरफ देखा और पूछा कि तुम अपनी कहो। तो उसने कहा, कहना कुछ नहीं है, मैं यह पूछने आया हूं कि भगवान का प्रमाण क्या है ? संत ने जो उत्तर दिया वह अदभुत था । संत ने कहा, भक्तों की आंख
भगवान का प्रमाण है, और तो कहीं नहीं। भक्तों की आंख में। इनकी आंखें देख । गौर से जा एक-एक के पास, इनकी आंख में झांक ।
उसने कहा, आंखों-वांखों की बातें छोड़ो, मैं तर्कयुक्त प्रमाण चाहता हूं। उस
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