________________
तृष्णा का स्वभाव अतृप्ति है
में बर्दाश्त के बाहर हो गए। तो जिन लोगों के बीच काम कर रहे थे, वे लोग इतनी ऊंचाई की बात समझ नहीं सकते थे। जीसस की करुणा नहीं समझ सके तो बुद्ध की करुणा तो कैसे समझते! .
ऐसा ही समझो कि जीसस को जो क्लास मिली थी, वह पहली कक्षा थी। अब पहली कक्षा को अगर तुम आइंस्टीन की गणित समझाने लगो तो तुम पागल हो। बुद्ध को जो क्लास मिली थी, वह विश्वविद्यालय की आखिरी कक्षा थी। वहां अगर तुम बाराखड़ी सिखाओगे और वर्णमाला सिखाने लगोगे और कहोगे, एक
और एक मिलकर दो होते हैं, और दो और दो मिलकर चार होते हैं, तो विद्यार्थी तुम्हें निकालकर बाहर कर देंगे कि आप अपने घर जाएं। अलग तल पर बात थी।
बुद्धपुरुषों को समझने में सदा खयाल रखना, किनसे वह बात कर रहे थे? बात करने वाले से भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह समझना है कि वह किससे बात कर रहे थे। क्योंकि बुद्धपुरुष को यह तो दिखायी पड़ता है कि जिससे बात कर रहे हैं उसकी समझ के बहुत दूर न हो जाए। थोड़ी दूर हो, जरा सी दूर हो कि थोड़ा सरके, आगे बढ़े, लेकिन बहुत दूर न हो जाए, नहीं तो वह सुनेगा ही नहीं, उसकी समझ में ही न आएगा। देखते हो न कि एक-एक सीढ़ी चढ़कर आदमी पहाड़ चढ़ जाता है, लेकिन सीधी खाई से और पहाड़ पर छलांग तो नहीं लगती। एक-एक सीढ़ी। सीढ़ी करीब है, एक पैर उठाया, फिर दूसरी सीढ़ी करीब आ गयी, फिर दूसरा पैर उठाया, ऐसे एक-एक कदम रखकर आदमी हजारों मील की यात्रा कर लेता है।
बुद्ध जिनसे बात कर रहे थे, वे बड़े और तरह के लोग थे। जीसस जिनसे बात कर रहे थे, वे और तरह के लोग थे। मोहम्मद जिनसे बात कर रहे थे, वे और तरह के लोग थे।
इस अर्थों में बुद्ध सौभाग्यशाली हैं। इस अर्थों में मोहम्मद और जीसस सौभाग्यशाली नहीं हैं। वे प्राइमरी स्कूल में शिक्षक थे। प्राइमरी स्कूल की भाषा बोलनी पड़ती है। . उपनिषदों का मजा, या धम्मपद का मजा और है। कुरान पढ़ो तो ऐसा लगता है जैसे कि बहत नासमझों के लिए लिखी गयी है। ऊंचाइयां नहीं हैं, कभी-कभी ऊंचाई आती है, मगर आमतौर से ऊंचाइयां नहीं हैं। क्षुद्र बातों का भी ब्यौरा है। शादी-विवाह का भी ब्यौरा है। समाज-व्यवस्था का भी ब्यौरा है। कैसा आदमी उठे, चले, व्यवहार करे, इसका भी ब्यौरा है। वैसी ही स्थिति बाइबिल की है।
धम्मपद, या उपनिषद, या जिन-सूत्र बड़ी आकाश की बातों में हैं, बड़ी दूर ऊंचाइयां हैं उनकी, बादलों के पार। जब पहली दफे उपनिषदों का अनुवाद हुआ पश्चिम की भाषाओं में, तो उनको समझ में ही न पड़े कि ये धर्मग्रंथ कैसे हैं? क्योंकि इनमें धर्म की तो कोई बात ही नहीं। जिसको ईसाई धर्म समझते हैं, उसकी बात है भी नहीं। चोरी मत करो, एक दफे नहीं कहता उपनिषद कि चोरी मत करो। यह बात
237