________________
एस धम्मो सनंतनो
धन्यवाद देना तो दूर, आदमी ईश्वर को गुनाहगार मानता है। तुमने जीवन दिया क्यों? यहां है क्या सिवाय दुख और पीड़ा के?
लेकिन जीसस की भाषा तुम्हें समझ में आती है, क्योंकि तुम्हारी वासना के करीब पड़ती है। तुम्हारी कामना के करीब पड़ती है। तुम चाहते हो सुंदर रूप हो, लंबा जीवन हो, बड़ी उम्र हो, धन हो, पद हो, प्रतिष्ठा हो। जीसस की चमत्कारी जीवन-व्यवस्था तुम्हें आकर्षित करती है। बुद्ध के पास तो सिर्फ वे ही लोग जाएंगे जो इस जीवन से ऊब गए हैं।
ये जो तीन आदमी जिनकी मैंने तुमसे कहानी कही, जिन्होंने जीसस को कहा कि क्षमा करो महाराज, तुम्हीं ने झंझट में डाल दिया, ये तीनों आदमी अगर बुद्ध के पास जाते तो इन्हें मार्ग मिलता। तो बुद्ध कहते, ठीक ही है, तुम ठीक ही कहते हो, जीवन में रखा क्या है! जीवन दुख है। जन्म दुख है, जीवन दुख है, जरा दुख है, मृत्यु दुख है, सब दुख है; तुम ठीक कहते हो।
अगर बुद्ध को जीसस मिलते तो जीसस से बुद्ध कहते, ऐसा करो ही मत। लोगों को जगाओ। यह तुम जो करुणा कर रहे हो, यह करुणा महंगी है, घातक है।
मुझे जीसस मिलें तो मैं भी उनसे यही कहूंगा कि यह करुणा घातक है। यह करुणा माना कि लोगों को जंचती है, क्योंकि लोगों की यह मांग है, लेकिन लोगों को जो जंचता है अगर वही ठीक होता, तो तुम्हारी जरूरत क्या है? लोगों के जंचने के ढंग को बदलना है, लोगों का प्रेय बदलना है, लोगों को श्रेय देना है। लोगों को बताना है कि असली आंख और है, असली कान और है, असली जीवन और है। देह का जीवन नहीं, मन का जीवन नहीं।
तुम्हारा प्रश्न सार्थक है। मैं तो बुद्ध के साथ राजी हूं। बुद्ध महाकरुणावान हैं। लेकिन जीसस के साथ ज्यादती हो जाएगी अगर मैं इतनी बात तुम्हें याद न दिला दूं कि बुद्ध जिस देश में पैदा हुए, उसमें हजारों वर्ष के बुद्धत्व का इतिहास था, इसलिए इतनी ऊंची महाकरुणा की बात समझने वाले लोग भी मिल सकते थे, मिल गए थे। जीसस ने जो काम शुरू किया, वह एक ऐसी जगह शुरू किया जहां कोई बुद्धत्व का इतिहास न था। यहूदी जिनको पैगंबर कहते हैं, वे भी आधे राजनीतिज्ञ। यहूदियों के पैगंबरों में एक भी आदमी बुद्ध और महावीर और कृष्ण की कोटि का नहीं है। इसीलिए तो जीसस को सूली लगा दी उन्होंने। हमने सूली नहीं लगायी बुद्ध को। कुछ ऐसा थोड़े ही था कि बुद्ध ने कोई क्रांति की बातें नहीं कहीं! बुद्ध ने महाक्रांति की बातें कही हैं। जड़-मूल से उखाड़ दिया इस देश की धारा को, परंपरा को, फिर भी हमने फांसी नहीं लगायी। हम नाराज भी हुए तो भी हमने फांसी नहीं लगायी। हमें अगर बुद्ध की बात नहीं भी पसंद पड़ी तो भी हमने फांसी नहीं लगायी।
बुद्ध बयासी साल की लंबी उम्र तक जीए, जीसस को तैंतीस साल की उम्र में मर जाना पड़ा। जीसस ने केवल तीन साल काम किया यहूदियों के बीच; तीन साल
236