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________________ एस धम्मो सनंतनो हैं कि ध्यान करो, अंतर्दृष्टि खुल जाएगी। सम्हालो अपनी अंतर्दृष्टि, तुम कहना चाहते हो, हमें आंख चाहिए, चमत्कार चाहिए। इसलिए तो तुम चमत्कारी के पीछे इकट्ठे हो जाते हो। वहां तुम्हें आशा दिखती है। तुम्हारा जीवन से मोह नहीं छूटा है। तो जीवन को जो सम्हाल देता है, संवार देता है, तुम उसकी पूजा करते हो। बुद्ध तो कहते हैं, इसमें कुछ भी सार नहीं है। यह देह ही चली जाएगी। यह जाकर ही रहेगी। और दो-चार-दस साल जी लोगे, फिर क्या होगा? मरना तो सुनिश्चित है। जब मरना सुनिश्चित है, तो कुछ ऐसा करो कि मरने की प्रक्रिया सदा के लिए छूट जाए। तो कुछ ऐसे अंतर्लोक में जागो, जहां मृत्यु घटती नहीं। इसलिए अगर तुम मुझसे पूछते हो तो मैं कहूंगा, बुद्ध महाकरुणावान हैं। क्राइस्ट करुणावान। क्राइस्ट तुम्हें समझ में आएंगे, बुद्ध तुम्हें समझ में न आएंगे। जो तुम्हें समझ में आ जाता है, वह तुम्हें रूपांतरित न कर पाएगा। जो तुम्हें समझ में नहीं आता। उसी के साथ तुम्हारे जीवन में क्रांति घटित होगी। ____एक जीसस के जीवन की बड़ी प्यारी कहानी है, मुझे बहुत प्रिय है। ईसाइयों ने तो उसे लिखा भी नहीं। बाइबिल में संगृहीत भी नहीं किया। लेकिन सूफियों ने उसे बचा रखा है। सूफियों ने जीसस की कई कहानियां बचा रखी हैं जो ऐसी अदभुत हैं कि उनके बिना बाइबिल अधूरी है। लेकिन शायद बाइबिल लिखने वालों ने सोचकर छोड़ दिया होगा, क्योंकि वे खतरनाक कहानियां हैं। जीसस एक गांव में आए और उन्होंने एक आदमी को देखा,, जो शराब में धुत्त, सड़क के किनारे गटर में पड़ा गाली-गलौज बक रहा था। जीसस ने उसे हिलाया और कहा कि मेरे भाई, क्या जीवन शराब पीने को मिला है? उस आदमी ने आंखें खोलीं, थोड़ा होश उसे आया, उसने जल्दी से जीसस के पैर पकड़ लिए। उसने कहा, महाप्रभु, मैं तो मर गया था, तुमने ही तो मुझे जिलाया था, अब तुम्ही जवाब दो कि मैं जिंदगी का क्या करूं? मैं तो मर गया था, तुमने मुझे जिला दिया, अब में क्या करूं इस जिंदगी के साथ? और अब तुम आ गए हो मुझे समझाने कि शराब मत पीओ! मैं जिंदगी के साथ करूं क्या? यह जिंदगी बहुत बोझिल है और बड़ा दुख मुझे मिल रहा है। शराब मैं पीकर किसी तरह अपने को भुला रहा हूं। अब अपनी समझदारी अपने पास रखो। तुम्ही जिम्मेवार हो! मैं तो मर गया था, तुमने जिलाया क्यों, इसका जवाब दो। जीसस तो बहुत घबड़ा गए होंगे कि यह आदमी कोई मुकदमा चलाएगा या क्या करेगा? लेकिन बड़े उदास भी हो गए। क्योंकि उन्होंने तो इसे जीवन दिया था, यह सोचा भी न था कि जीवन के बाद भी तो जीवन में अर्थ चाहिए न, जीवन से क्या होगा! जीवन में अर्थ न होगा तो जीवन का करोगे क्या? जीवन में अगर दिशा न होगी तो जीवन का करोगे क्या? जीवन ही मिल जाने से थोड़े ही कुछ मिलता है, 234
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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