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तृष्णा का स्वभाव अतृप्ति है
महाचिकित्सक, महाकरुणावान।
इसलिए हमने बुद्ध को करुणावान नहीं कहा है, महाकरुणावान कहा है। बुद्ध कुछ ऐसा जीवन दे देते हैं जो फिर कभी छुड़ाए न छूटेगा। कुछ ऐसी आंख दे देते हैं जो फिर कभी न फूटेगी। कुछ ऐसे कान दे देते हैं, कुछ ऐसे श्रवण की क्षमता दे देते हैं कि जो सुनने योग्य है, सुन लिया जाएगा। कुछ ऐसे पैर दे देते हैं जो कि अगम्य में गति हो जाती है, अज्ञात में प्रवेश हो जाता है। बुद्ध भी देते हैं, देह पर नहीं, आत्मा पर; बाहर नहीं, भीतर।
भारत ने इस बात को बहुत मूल्य कभी दिया नहीं कि अंधे को आंख मिल जाए, कि बहरे को कान मिल जाएं, इससे क्या होगा? इतने तो लोग हैं जिनके पास आंख है-आंख वालों के पास भी आंख कहां! एक और अंधे को आंख मिल गयी, इससे क्या होगा? इतने तो लोग हैं कान वाले, इन्हें कुछ भी तो सुनायी नहीं पड़ा अब तक। कौन सा संगीत सुना इन्होंने? कौन सा सत्य सुना इन्होंने? और जीसस को खुद ही तो बार-बार अपने शिष्यों से कहना पड़ता है-आंखें हों तो देख लो, कान हों तो सुन लो। उनके पास आंखें भी थीं, कान भी थे, लेकिन जीसस को बार-बार कहना पड़ता है-सुनो, कान खोलकर सुनो; आंखों का उपयोग करो।
बुद्ध भी आंख देते हैं, महावीर भी आंख देते हैं, कृष्ण भी आंख देते हैं-सूक्ष्म की आंख, अंतर्दृष्टि। ऐसी आंख जो एक बार खुल जाए तो फिर कभी बंद नहीं होती। बुद्ध भी जगाते हैं, मृत्यु से नहीं, जीवन से जगाते हैं। इसलिए महाकरुणा। मृत्यु से जगाया हुआ तो फिर मरेगा, फिर पैदा होगा-जीवन से जगा देते हैं कि फिर न कोई जन्म हो और न कोई मृत्यु हो। महाजीवन में जगा देते हैं। ___लेकिन साधारणतः तुम्हें भी जीसस की बात ज्यादा अर्थपूर्ण मालूम पड़ेगी। इसीलिए तो दुनिया में ईसाई बढ़ते गए। ईसाई के बढ़ते जाने का कारण है। हर आदमी को बात जंचती है। तुम्हारी भाषा में है। तुम्हें फिकर भी कहां अंतर्दृष्टि की। तुम कहते हो, छोड़ो भी, अंतर्दृष्टि चाहिए किसको! इधर हमारी आंख पर चश्मा चढ़ा है, आप अंतर्दृष्टि की बातें कर रहे हैं! पहले चश्मा तो उतर जाए। इधर हमें सुनायी नहीं पड़ रहा है, आप कहां की सत्य की बातें कर रहे हैं, पहले कान ठीक हो जाए। इधर मेरा पैर लंगड़ा है और आप कहते हैं परमात्मा में यात्रा करो, पहले संसार में यात्रा करने योग्य तो बना दें। तुम्हारी आकांक्षा के अनुकूल है जीसस की करुणा। जीसस की करुणा तुम्हारे हिसाब से करुणा है, बुद्ध की महाकरुणा बुद्ध के हिसाब से। ___ फर्क को समझ लेना। जीसस तुम्हें वही देते हैं जो तुम मांग रहे हो। जीसस तुम्हें प्रेय देते हैं। बुद्ध तुम्हें श्रेय देते हैं। श्रेय तुमने मांगा नहीं है। इसलिए तुम बुद्ध को शायद धन्यवाद भी नहीं दोगे। क्योंकि जो तुमने मांगा ही नहीं है, उसको तुम धन्यवाद क्यों दोगे? जो बात तुमने मांगी ही नहीं थी, शायद तुम नाराज ही होओगे कि हम कुछ मांगने आए, आप कुछ दे रहे हैं। हम कहते हैं आंखें ठीक कर दो, आप कहते
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