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एस धम्मो सनंतनो
महावीर के बारह साल की साधना के समय में, कहते हैं, कुल तीन सौ पैंसठ दिन उन्हें भोजन मिला था । मतलब ग्यारह साल भूखे और एक साल भोजन, ऐसा । एक-एक दिन कभी सात दिन के बाद, कभी पंद्रह दिन के बाद, कभी महीनेभर के बाद। जरूर उन्होंने कोई कानूनी तरकीब नहीं की होगी, नहीं तो अपना एक ही नियम रोज ले लिया कि दो केले । धीरे-धीरे लोगों को पता चल ही जाएगा कि जहां दो केले लटके होते हैं, वहीं ये भोजन लेते हैं, तो फिर श्रावक दो केले लटकाने लगेंगे। दो क्या वे दो सौ लटका दें, तो उससे कोई फर्क ! कितनी अड़चन है उसमें !
इतना ही नहीं, दिगंबर जैन मुनि किसी गांव में जाए, हो सकता है लोगों को पता न हो, नए गांव में पहुंचे, लोगों को पता न हो कि वह क्या नियम लेता है, तो एक चौका उसके साथ चलता है। एक श्रावक, एक श्राविका, दो-चार सज्जन – एक चौका उसके साथ चलता है। तो वह हर गांव में जहां जाता है, उसके एक दिन पहले पहुंच जाते हैं। गांव के लोग तो भोजन बनाते ही हैं, अगर वहां न मिले तो इस चौके वालों को तो पक्का पता है, अगर गांव में न मिल पाए तो लौटकर इस चौके में भोजन मिल जाता है, लेकिन भोजन कभी चूकता नहीं। फिर जरूरत क्या है इसको करने की? वह महावीर की जो बात थी वह तो खो गयी। आदमी बेईमान है।
एक बार ऐसा हुआ कि एक बौद्ध भिक्षु भिक्षा मांगकर लौट रहा था और एक चील मांस का टुकड़ा लेकर जाती होगी, उसके मुंह से छूट गया। वह भिक्षु के पात्र में गिर गया। अब बुद्ध ने कहा था, जो तुम्हारे पात्र में गिर जाए, वह स्वीकार कर लेना। अब उसने सोचा कि क्या करना ? ताजा मांस का टुकड़ा था। पुराना मांसाहारी था वह। तो उसने सोचा कि भगवान ने खुद ही कहा है कि जो पात्र में गिर जाए, अब इसमें इनकार भी कैसे करना ।
लेकिन पास में और भिक्षु भी थे, उन्होंने भी देख लिया था, उन्होंने कहा कि ठहरो! ऐसी स्थिति के लिए भगवान ने नहीं कहा है। भगवान से पूछना पड़ेगा। अभी रुको। उनको भी ईर्ष्या सताने लगी कि यह तो मांस खा जाएगा और हम! सभी क्षत्रिय थे। क्योंकि बुद्ध के अनुयायी और महावीर के अनुयायी अधिकतर सब क्षत्रिय थे, वे दोनों भी क्षत्रिय थे। तो क्षत्रिय घरों से लोग ज्यादा आए थे।
भगवान के पास बात गयी । बुद्ध ने सोचा। उन्होंने सोचा - तुम्हारी बेईमानी के कारण कैसी अड़चनें खड़ी होती हैं— उन्होंने सोचा कि अगर मैं कहूं कि तुम्हारे पात्र में जो गिरा है तुम कर लो भोजन, तो यह मांसाहार करेगा। मगर, अगर मैं कहूं कि नहीं, तुम्हारे ऊपर छोड़ता हूं, कभी ऐसी स्थिति आ जाए कि जो करने योग्य नहीं है तो छोड़ देना, तो भी खतरा है। क्योंकि फिर तत्क्षण भिखारी -फिर भिक्षु जो है बौद्ध का - वह घरों में जाने लगेगा, जो उसको पसंद नहीं है वह उसको छोड़ने लगेगा। वह कहेगा, यह करने योग्य नहीं है। किसी ने रूखी-सूखी रोटी दी वह छोड़ देगा, किसी ने पूड़ी तो वह ले लेगा। तो वह खतरा और बड़ा हो जाएगा। यह चील इत्यादि
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