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जितनी कामना,
उतनी मृत्यु
तो दूसरे की चीज पर भी कब्जा कर लेते हैं।
मैं कल एक कहानी पढ़ रहा था। एक धनी यहूदी एक भिक्षुक को हर साल एक निश्चित रकम दिया करता था। एक साल उसने उससे आधी ही रकम भिक्षुक को
। भिक्षुक ने इस पर मुंह बनाया तो धनी ने उसे समझाया, भाई, इस साल मेरे खर्चे बहुत बढ़ गए हैं। मेरा सबसे बड़ा बेटा देश की सबसे बड़ी नर्तकी पर फिदा हो गया है और उस पर पानी की तरह पैसा बहा रहा है। इसलिए मुझे क्षमा करो, इस बार ज्यादा न दे सकूंगा । ऐसा सुनकर तो भिक्षुक एकदम खफा हो गया और बोला, श्रीमान जी, आपका चिंरजीव अगर देश की सबसे बड़ी नर्तकी को पालना चाहता है तो पाले, मगर अपने पैसों से पाले, मेरे पैसों से तो नहीं।
दूसरे की चीज पर भी अपना कब्जा हो जाता है।
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खयाल रहे, संन्यासी का अर्थ है, दूसरे की चीज पर तो कब्जे का सवाल ही न रहा, कोई चीज अपनी है ऐसी धारणा भी विदा हो जाए। अब एक छोटी सी चादर, वह साम्राज्य बन गयी। एक छोटी सी चादर, उसी में उसने बेईमानी भी निकाल ली। मोटे धागे की थी, कह तो सकता नहीं था । कह नहीं सकता था कि इसे न लूंगा, कि पतले धागे की चाहिए। मगर कानूनी तरकीब निकाल ली। जहां कानूनी तरकीबें हैं, वहां आदमी की सर्लता खो जाती है, पाखंड शुरू हो जाता है।
जैन मुनियों में, विशेषकर दिगंबर जैन मुनियों में, महावीर के समय से चला आया एक नियम है, प्यारा नियम है। महावीर जब निकलते थे सुबह ध्यान के बाद भिक्षा के लिए, तो वे एक व्रत ले लेते थे मन में कि अगर आज किसी घर के सामने दो आम लटके होंगे, तो मैं भोजन ले लूंगा । या किसी घर के सामने एक काली गाय खड़ी होगी तो भोजन ले लूंगा। ऐसा एक नियम ले लेते, फिर सारे गांव में घूम आते। कभी-कभी महीनों तक भी भोजन नहीं मिलता था, क्योंकि अब इसका क्या भरोसा ।
एक दफा उन्होंने नियम ले लिया कि एक बैल खड़ा हो, और बैल के सींग में गुड़ लगा हो। तीन महीने तक बैल न मिला। अब बैल के सींग में गुड़ लगा हुआ ! फिर जिस घर के सामने खड़ा हो उस घर के लोग निमंत्रण दें, तब न । तो कई बातें मिलनी चाहिए। वह मेल नहीं खाईं तो तीन महीने तक वे वापस लौट आते थे।
दिगंबर जैन मुनि अभी भी इसका पालन करता है। लेकिन उसने कानूनी तरकीब निकाल ली है । वह दो-तीन चीजें उसने तय कर रखी हैं, बस उतने ही लेता है नियम । तो तुम बहुत चकित होगे, जब दिगंबर जैन मुनि गांव में आता है तो कई घरों के सामने तुम देखोगे कि दो केले लटके हैं, दो आम लटके हैं। बस वह दो-तीन चीजें रखता है, तो सभी घरों के सामने उतनी चीजें लटका देते हैं। अब यह कानूनी तरकीब हो गयी। अब वह एक भी दिन बिना भोजन किए नहीं जाता। महावीर को तीन महीने तक भी एक दफा भोजन बिना किए जाना पड़ा था। और अक्सर बिना भोजन किए
जाना पड़ता था ।
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