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________________ एस धम्मो सनंतनो अयसा'व मलं समुट्ठितं तदुट्ठाय तमेव खादति। एवं अतिधोनचारिनं सानि कम्मानि नयन्ति दुग्गति।। 'जैसे लोहे का मोर्चा उससे उत्पन्न होकर उसी को खाता है, वैसे ही सदाचार का उल्लंघन करने वाले मनुष्य के अपने कर्म उसे दुर्गति को पहुंचाते हैं।' __ यह कथा महत्वपूर्ण है। एक तो तुम यह मत सोचना कि ज्यादा हो तो ही परेशानी होगी। ज्यादा-कम से कोई संबंध नहीं है। परेशानी लानी हो तो किसी भी चीज पर परेशानी आ सकती है। क्षुद्र सी चीज पर परेशानी हो सकती है। और परेशानी न होनी हो, न उठानी हो, न परेशानी में जाना हो, तो विराट से विराट चीज भी कोई परेशानी नहीं ला सकती। तो कभी ऐसा भी होता है कि भिक्षु तिष्य जैसा आदमी एक चादर के पीछे चिंतित हो जाता है। और कभी राजा जनक जैसा आदमी बड़े साम्राज्य में रहते हुए भी जरा भी चिंतित नहीं होता। तो एक बात खयाल में लेना कि चिंता बड़े और छोटे से संबंधित नहीं है। चिंता समझ और नासमझी से संबंधित है। अब यह आदमी भिक्षु हो गया, सब छोड़ दिया, मगर भीतरी वासना बदली नहीं। वही का वही। कभी हो सकता था रास्ते पर अकड़कर चलता रहा हो, अब भी वही अकड़ कायम है, छिप गयी है। रस्सी शायद जल भी गयी हो, तो भी उसकी अकड़ नहीं गयी! आज उसे एक पतली चादर मिल गयी, महीन चादर, तो वह सोचता, अहा! अब जरा मैं पहनकर चलूंगा। भगवान के पास भी ऐसी चादर नहीं है। उसका चित्त इससे बड़ा प्रसन्न हो रहा है। यह ईर्ष्या, यह अहंकार, यह प्रदर्शन की भावना; यह तो संन्यासी का लक्षण नहीं। इसलिए बुद्ध कहते हैं, यह आचरण से पतन है। संन्यासी के आचरण का तो अर्थ ही यह होता है कि अब उसको प्रदर्शन की कोई इच्छा नहीं रही। अब दिखावे में उसका कोई रस नहीं है। संन्यासी का तो अर्थ ही यह होता है कि छोटी चीज हो कि बड़ी चीज हो, अब उसका ऐसा कोई मोह नहीं कि वह पकड़े। संन्यासी का तो अर्थ ही यह होता है कि अपना भी जो है उसे भी अपना न माने, देह को भी अपना न माने, मन को भी अपना न माने। - संसारी का अर्थ होता है कि वह तो दूसरे की चीजों को भी अपना मान लेता है। यहां तुम आए, न तो जमीन लेकर आए, न मकान लेकर आए। जमीन यहां थी, तुम आए उसके पहले थी, तुमने उस पर झंडा गाड़ दिया, तुम्हारी हो गयी। आदमी अजीब पागल है। जब अमरीकन पहली दफा चांद पर गए तो वहीं झंडा गाड़ आए। झंडा गाड़े बिना चलता ही नहीं। जैसे चांद किसी के बाप का हो। उस पर झंडा गाड़ दिया। जब हिलेरी एवरेस्ट पर चढ़ा तो उसने एवरेस्ट पर झंडा गाड़ दिया। अब एवरेस्ट सदियों से है, आदमी नहीं था, तब से है। चांद कब से है! आदमी रहेंगे और समाप्त हो जाएंगे और चांद बना रहेगा। किसका है! लेकिन हम 218
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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