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जितनी कामना, उतनी मृत्यु
__ जिसके पास भी कुछ है, वह चिंता की वजह से सो नहीं पाता। इसलिए गरीब सो लेता है, अमीर नहीं सो पाता। अमीर को सोना चाहिए ज्यादा शांति से, उसके पास सब है, गरीब के पास कुछ भी नहीं है; लेकिन गरीब सो लेता है, अमीर नहीं सो पाता। जैसे-जैसे धन बढ़ता है, वैसे-वैसे चिंता बढ़ती है।
यह भिक्षु तिष्य रोज शांति से सो लेते थे, आज बड़ी बेचैनी में पड़ गए—रात कोई चुरा ही ले! अब भिक्षु ठहरते थे एक ही जगह, एक ही छप्पर के नीचे हजारों भिक्षु ठहरते थे—रात कोई उठा ही ले! तो सुबह पता लगाना मुश्किल हो जाएगा।
और चादर ऐसी है कि किसी की भी आंख में गड़ सकती है। और किसी ने देख ही ली हो बहन को लाते हुए, और कोई इसकी प्रतीक्षा में बैठा हो। तो रात भय के कारण दो-चार बार तो उठ-उठकर अंधेरे में टटोलकर उन्होंने देख लिया कि चादर अपनी जगह है या नहीं?
नींद में उस सुंदर वस्त्र के संबंध में तरह-तरह के स्वप्न भी चलते रहे। कब सुबह हो और कब पहनूं, ऐसी वासना पास-पास मंडराती रही। संयोग की बात कि उसी रात तिष्य का देहांत हो गया। वह चीवर के प्रति इतनी अति बलवती तृष्णा थी उनकी—उस चादर, चीवर के प्रति—कि तिष्य मरकर चीलर हो गए और उसी चीवर में समा गए। मरते ही चीलर हो गए और चीवर में जा बैठे।
' दूसरे दिन भिक्षु उनके मृत शरीर को जलाकर नियमानुसार उस चीवर को परस्पर बांटने के लिए उठाए। यह भी नियम था, जब एक भिक्षु मर जाए तो उसकी वस्तुएं बांट दी जाएं, जिनके पास न हों उन्हें दे दी जाएं। वह चीलर तो पागल हो उठा। वह चीलर-अब तो तिष्य कहां थे, अब तो चीलर हो गए थे, वह उस चादर में छिपे बैठे थे-वह बिलकुल पागल हो उठा। हमारी वस्तु लूट रहे हैं, कह-कहकर इधर-उधर दौड़ने और चिल्लाने लगा।
भगवान के अतिरिक्त कोई और तो उस चीलर की आवाज सुन न सका। भगवान ने उसकी आवाज सुनी, हंसे और उन्होंने आनंद से कहा, आनंद, उन भिक्षुओं से कह दो कि तिष्य की चीवर को अभी वहीं की वहीं रख दें। सातवें दिन बाद वह चीलर मर गया। चीलर की उम्र कितनी! जब तिष्य ही मर गए तो चीलर की कितनी उम्र, चीलर कितनी देर जीएगा! तब भगवान ने भिक्षुओं को तिष्य के चीवर को आपस में बांट लेने को कहा।
भिक्षुओं ने स्वभावतः भगवान से एक सप्ताह पहले रुक जाने और फिर आज अचानक बांटने की आज्ञा देने का कारण पूछा।
तब भगवान ने तिष्य के चीलर होने और दुबारा मरने की बात बतायी और कहा, कामी अनंत बार मरता है। जितनी कामना, उतनी मृत्यु। क्योंकि जितनी कामना, उतने जन्म। प्रत्येक कामना एक जन्म बन जाती है और प्रत्येक कामना एक मृत्यु बन जाती है। और यह गाथा कही
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