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एस धम्मो सनंतनो
भेंट लेने की उन्हें आज्ञा थी। तीन वस्त्र रख सकते थे, इससे ज्यादा नहीं। तो कोई चादर भेंट कर देता, या कोई भिक्षापात्र भेंट कर देता। तो पुराना भिक्षापात्र छोड़ देना पड़ता, पुरानी चादर छोड़ देनी पड़ती।
यह भिक्षु तिष्य ने वर्षा-वास किया किसी गांव में। जब वर्षा-वास के बाद उन्हें एक मोटे सूत वाला चादर भेंट किया गया तो उन्हें पसंद न आया। बहुत मोटे सूत वाला था।
भिक्ष को आज्ञा नहीं थी कि जो उसे दिया जाए उसमें वह शिकायत करे। या वह कहे कि यह बहुत मोटे सूत वाला है, यह मैं न लूंगा। भिक्षु को जो दिया जाए, वह चुपचाप स्वीकार कर ले। लेकिन आदमी तो होशियार होते हैं, कानूनी होते हैं, तरकीब तो निकाल ही लेते हैं।
उसी गांव में तिष्य की बहन रहती थी। जब यह चादर भेंट की गयी तो वह बहन भी खड़ी थी। तो भिक्षु तिष्य ने वह चादर बहन के हाथ में रख दिया—कुछ कहा नहीं! बहन को भी बात समझ में आ गयी कि चादर बहुत मोटे सूत वाला है। वह घर गयी। उसने उस मोटे सूत वाले चादर को तेज चाकू से पतला-पतला चीर, ओखल में कूट, उसे धुनकर पुनः पतले सूत वाली चादर तैयार की। इस बीच भिक्षु तिष्य बड़ी आतुरता से उस वस्त्र की प्रतीक्षा करते थे और मन ही मन उसके संबंध में अनेक-अनेक कामनाएं बनाते थे, कि ऐसा होगा चादर, कि वैसा होगा चादर; कि ओढ़कर ऐसा चलूंगा, कि वैसा चलूंगा।
खयाल करना, आदमी को वासना बनाने के लिए कोई बहुत बड़ा सामान नहीं चाहिए। फकीर की लंगोटी काफी है। उस पर ही सारे महल बन सकते हैं कामना के। कुछ ऐसा नहीं है कि तुम्हें बहुत बड़ा महल चाहिए, एक झोपड़ी बहुत। आदमी की वासना को टांगने के लिए कोई भी खूटी काम आ जाती है। अब एक चादर थी, उस पर कोई ऐसा परेशान होने की जरूरत न थी, लेकिन भिक्षु के लिए चादर ही बहुत है। वह खूब सोचने लगे कि बहन ऐसा बनाएगी, कि बहन वैसा बनाएगी।
बड़ी आतुरता से प्रतीक्षा करते थे। मन ही मन बड़ी कामनाएं उठतो थीं। फिर एक दिन उनकी बहन ने वह वस्त्र लाकर उन्हें भेंट किया। उनका मन-मयूर नाच उठा। ऐसा सुंदर चीवर तो भगवान के पास भी नहीं है, तिष्य ने सोचा। और अहंकार को खूब पोषण मिला। उन्होंने कहा कि अब कल जब निकलूंगा पहनकर तो भगवान को भी पता चलेगा, कि तुम्हारे पास भी ऐसा सुंदर चादर नहीं है। संघ में किसी के पास ऐसा चादर नहीं है।
लेकिन सांझ हो गयी थी, सो तिष्य ने सोचा, कल पहनूंगा। अब रात को पहनकर निकलूंगा तो देखेगा भी कौन? और मजा तो दिखाने ही का होता है। ऐसा सोचकर बड़े जतन और लाड़-प्यार से उस वस्त्र को अरगनी पर टांग दिया। वे रात उसकी चिंता में ठीक से सो भी न सके।
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