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एस धम्मो सनंतनो
जवानी की आखिरी दीवाल से पीठ लगाकर
मैं तुमसे अंत तक लडूंगा। लड़ते रहे। कविता ठीक ही है। वह जो कह रहे हैं, ऐसा ही किया उन्होंने।
लेकिन जीवन के लिए लड़ना, इसका एक ही अर्थ होता है-दूसरे जीवन की मांग। मौत तो आती, मगर मौत से लड़कर तुम दूसरे जीवन के लिए रास्ता बना लेते हो। पैदा हो गए होंगे किसी गर्भ में, क्योंकि इतनी देर वह रुक नहीं सकते। इतनी प्रबल आकांक्षा थी जीवन की, जीवन को पकड़ रखने का ऐसा भाव था कि देर न लगी होगी, इधर मरे होंगे उधर पैदा हो गए होंगे। फिर वही चक्कर, फिर वही उपद्रव, फिर मरेंगे। आशा की जा सकती है कि इस बार ऐसी भूल न करेंगे, इस बार स्रोतापन्न होकर मरेंगे।
स्रोतापन्न का अर्थ है, अब मृत्यु को स्वीकार करके मर रहे हैं। क्योंकि मृत्यु जीवन का अपरिहार्य अंग है। मृत्यु ऐसे ही अनायास दुर्घटना नहीं है, मृत्यु जीवन का ही हिस्सा है। मृत्यु जीवन पर छायी है, जीवन में छिपी है। स्वीकार करके मर रहे हैं, क्योंकि अब जीवन की कोई आकांक्षा नहीं है। देख लिया, बहुत देख लिया, सब तरफ से देख लिया और कुछ सार नहीं पाया, इसलिए इस आनंदभाव से मर रहे हैं लड़ते हुए नहीं। शांतभाव से डूब रहे हैं।
- जो शांत भाव से मर जाए, उसका फिर जन्म नहीं होता। जो परिपूर्ण शांति में मर जाए, वह अनागामी हो जाता है। वह उस लोक में थिर हो जाता है, जिसको बुद्ध आर्यभूमि कहते हैं।
निद्धन्तमलो अनंगणो दिब्बं अरियभूमिमेहिसि।
मैं तुमसे भी यही कहता हूं। मौत तो आएगी, उसको स्वीकार करना। जीवन की व्यर्थता दिख जाए तो ही स्वीकार कर सकोगे। अगर जीवन में सार्थकता दिखती है, तो कैसे स्वीकार करोगे? तो तुम लड़ोगे। लड़े कि तुम चूक जाओगे। यहां लड़ने को कुछ है ही नहीं। यहां जागने को बहुत कुछ है, लड़ने को कुछ भी नहीं है। जीतने को कुछ भी नहीं है, जागने को बहुत कुछ है। और जो जाग गया, वही जीत गया। __ इसलिए जागे पुरुषों को हमने जिन कहा है। जिन यानी जीते हुए। मगर उनकी सारी जीत क्या थी? उनकी सारी जीत उनके जागरण में थी। ___ जीवन एक तरह का भुलावा है, छलावा है। यह आशा बंधाता है। अभी तो कुछ भी ठीक नहीं है-कभी ठीक नहीं होता-मगर जीवन कहता है, कल ठीक हो जाएगा। अभी कल तक तो रुको, एक दिन तो और मांग लो, कौन जाने कल ठीक हो ही जाए। तो जीवन जीता आशा से।
__ अभी-अभी कोहरा चीरकर चमकेगा सूरज
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