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________________ जितनी कामना, उतनी मृत्यु जिसने पहली सांस ली, वह बच्चा भी उसी दशा में है। क्योंकि कई बार तो पहली सांस के बाद ही दूसरी सांस नहीं आती। जो बच्चा पैदा हो गया, उसके पास मौत घिरी है। कब आएगी, इसका पक्का पता नहीं है। लेकिन एक बात तो पक्की है कि आएगी। आ ही गयी है। तुम्हें घेरकर बैठी है। फिर तुम अगर सोचो कि कल निर्णय करेंगे, तो क्या पता बीच में आ जाए, तो निर्णय कभी न हो पाए। इसलिए जिस व्यक्ति को जीवन में क्रांति लानी है, उसके लिए समय नहीं है। उसके लिए यही क्षण है, एक ही क्षण है। इस क्षण में झुक जाए तो झुक जाए, इस क्षण में स्रोतापत्ति-फल पैदा हो जाए तो हो जाए। या तो अभी, या कभी नहीं। क्योंकि अभी के अतिरिक्त कोई समय ही नहीं है। झुक गया बुद्ध के चरणों में, चरणों में झुके-झुके मर गया। अपूर्व धन्यभागी था। समर्पण की दशा में मर गया! बुद्ध की उस चौंधती हुई रोशनी में मर गया। उस भाव को समझता हुआ मर गया। बेटे तो रोए होंगे, परिवार तो रोया होगा। क्योंकि उनको तो यह दिखायी भी न पड़ा होगा कि क्या हुआ। लेकिन बुद्ध प्रसन्न हुए होंगे, बुद्ध के जागरूक भिक्षु समझे होंगे। उन्होंने समझा होगा कि अपूर्व घटा! इसीलिए तो यह कथा धम्मपद में सम्मिलित कर ली गयी। सभी कथाएं सम्मिलित नहीं कर ली गयीं, चालीस वर्षों में हजारों बातें घटी हैं बुद्ध के जीवन में, सभी नहीं सम्मिलित कर ली गयीं। जो बहुत प्रतीकात्मक हैं, बहुत सूचक हैं। यह बड़ी सूचक घटना है। तो लड़ो मत। जीवन के लिए मत लड़ो, मोक्ष के लिए लड़ो। लड़ना हो तो मोक्ष के लिए लड़ो। जीवन को लंबाने की आकांक्षा मत करो, आकांक्षा ही करनी हो तो जीवन से मुक्त होने की आकांक्षा करो। ____ मैं एक कविता कल पढ़ रहा था। दिनकर की है, जा चुके अब तो वह। ऐसे ही लड़ते-लड़ते गए। मरते समय भी स्रोतापन्न होने का सौभाग्य नहीं मिला। मेरे पास आते थे, ध्यान की बात भी पूछते थे, कहते थे कभी करूंगा भी, लेकिन चिंता उनको देह की ही बनी रहती थी। डायबिटीज थी, तो उसकी चिंता। भोजन से प्रेम था और डायबिटीज होने के कारण भोजन अब ठीक से जो करने का मन होता था वह नहीं कर पाते थे, उसकी बड़ी पीड़ा थी। ऐसे ही गए। उनकी यह कविता कल मेरे हाथ लग गयी बुढ़ापा, तुमसे मेरी दोस्ती नहीं, लड़ाई है; तुम्हारा आना दोस्त का आना नहीं दुश्मन की चढ़ाई है। तुम अकेले नहीं आए विपत्तियों की फौज सजाकर लाए हो, लेकिन मैं आत्मसमर्पण नहीं करूंगा, 213
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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