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________________ एस धम्मो सनंतनो गयी। उसने बुद्ध के चरणों में सिर रख दिया। झुक गया, समर्पित हो गया। उसने धन्यवाद दिया बुद्ध को । उसने कहा, कोई हर्ज नहीं । जीवनभर भटका, कोई हर्ज नहीं, अगर सुबह का भूला सांझ भी घर आ जाए तो भूला तो नहीं कहलाता। चलो सांझ ही सही, सूरज ढलते-ढलते सही, घर आ गया, बात समझ में आ गयी। उसने पीछे लौटकर देखना बंद कर दिया। जैसे ही तुम पीछे लौटकर देखना बंद करते हो और जीवन की कामना और वासना को छोड़ देते हो, वैसे ही शांति फलित हो जाती है, वैसे ही ध्यान लग जाता है | विचार अपने आप चले जाते हैं जब वासना चली जाए। विचार तो वासना की छाया है। वासना के जाए बिना जाते नहीं । तुम कितना ही विचारों को हटाओ, जब तक वासना घर जमाए बैठी है, तब तक विचार आते ही रहेंगे। जब तक वासना का वृक्ष है, तब तक विचारों के पक्षी उस पर डेरा डालते ही रहेंगे, आते ही रहेंगे। वासना ं का वृक्ष ही कट जाए तो फिर पक्षी आने अपने आप बंद हो जाते हैं। और यह एक क्षण में हुआ। यह बुद्ध-विचार की एक अनूठी प्रक्रिया है । फिर बुद्ध से लेकर ढाई हजार वर्षों में अनेकों को यह घटना घटी है। कभी-कभी एक क्षण में। योग में इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं है। योग तो कहता है, जन्मों-जन्मों चेष्टा करनी पड़ती है तब कुछ मिलता है । बुद्ध ने कहा कि अगर बोध की क्षमता हो, अगर साहस हो, अगर हिम्मत हो अज्ञात में उतरने की, तो एक क्षण में भी हो जाता है। कोई अनंतकाल तक प्रतीक्षा करने की जरूरत नहीं, श्रम करने की जरूरत नहीं । त्वरा चाहिए, तीव्रता चाहिए। अगर तीव्रता हो तो एक क्षण में लपट पैदा हो जाती है। और अगर तीव्रता न हो तो तुम जन्म-जन्म कोशिश करते रहो - अधूरी-अधूरी कोशिश, कुनकुनी -कुनकुनी कोशिश - कुछ परिणाम नहीं होता। आग जलती ही नहीं। पानी कभी भाप बनता नहीं । तुम कभी आकाश में उड़ते ही नहीं, पंख तुम्हें कभी लगते ही नहीं । I खयाल रखना, लोग मुझसे कभी-कभी आकर पूछते हैं कि समाधि कितने समय में फलित होगी? मैं उनसे कहता हूं, तुम पर निर्भर करता है । समाधि का कोई हिसाब नहीं है कि छह साल में, कि बारह साल में - महावीर को बारह साल में हुई, बुद्ध को छह साल में हुई - किसी को अस्सी साल भी लगते हैं, किसी को अस्सी जन्म भी लगते हैं, किसी को क्षण में भी हुई है। तुम पर निर्भर करता है, कितनी त्वरा ! कितनी तीव्रता ! कितने बल से तुम चले हो ! तुमने अपने को पूरा दांव पर लगाया तो 'एक क्षण में भी हुई है। और तुमने धीरे-धीरे दांव पर लगाया - दांव पर लगाया नहीं मतलब - धीरे-धीरे सौदा करने की कोशिश की कि देखें शायद इतने से हो जाए, कि देखें शायद इतने से हो जाए, तो काफी समय लग जाता है । समाधि समयातीत है, इसलिए समय का कोई संबंध नहीं है । एक क्षण में भी हो सकती है। यह बूढ़ा स्रोतापत्ति- फल को उत्पन्न होकर मरा । 210
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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