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एस धम्मो सनंतनो
अनुपुब्बेन मेधावी थोकथाकं खणे खणे। कम्मारो रजतस्सेव निद्धमे मलमत्तनो।।
'सुनार'—सुनार था बूढ़ा तो उन्होंने उदाहरण दिया कि-'सुनार जैसे चांदी के मैल को क्रमशः थोड़ा-थोड़ा और क्षण-क्षण जलाकर उसे शुद्ध करता है, वैसे ही मेधावी पुरुष अपने मैल को क्रमशः दूर कर लेता है।'
ऐसा ही तू कर।
अनुपुब्बेन मेधावी थोकथाकं खणे खणे ।
कितना ही मैल हो. धीरे-धीरे. थोडा-थोड़ा करके, क्षण-क्षण करके कट जाता है। सागर रीत जाते हैं। बूंद-बूंद करके घड़ा खाली हो जाता है।
अनुपुब्बेन मेधावी थोकथाकं खणे खणे। कम्मारो रजतस्सेव निद्धमे मलमत्तनो।।
और तू तो सुनार है, तू तो जानता कि चांदी में कितनी ही गंदगी हो, धीरे-धीरे साफ करके चांदी साफ हो जाती है। ऐसा ही तू भी मेधावी बन, साफ हो जा, शुद्ध हो जा, निर्मल हो जा। जीवन का आशीष नहीं देता, परमजीवन का आशीष देता हूं। ऐसे जीवन का आशीष देता हूं, जहां शाश्वत आनंद होगा, शाश्वत शांति होगी।
कहते हैं, वह स्वर्णकार सांत्वना की जगह यह चोट करने वाली बात सुन पहले तो बहुत चौंका।
पहले तो हतप्रभ रह गया होगा, किंकर्तव्यविमूढ़। पहले तो सोचा होगा, किस आदमी को बुला लिया! किससे आशीष मांगने की भूल कर ली! हम तो इस जीवन को बढ़ाने की बात कर रहे हैं, यह आगे के भी सब जीवन समाप्त करने का आशीर्वाद दे रहा है! हमने तो मांगा कि यह जीवन थोड़ा लंबा हो जाए और यह कह रहा कि कभी तेरा जीवन ही न हो अब कोई, अब सदा के लिए समाप्त ही हो जाए, अब बात ही खतम हो, जड़-मूल से ही काट देते हैं। पहले तो बहुत चौंका, जैसे कोई भी चौंकता। ___ संतों से पहले भी मिलना हुआ होगा तथाकथित संतों से, जो सांत्वना देते हैं। जिनका काम ही यह है कि तुम्हारे घाव पर मलहम-पट्टी करते रहते हैं। जो तुम्हें सब तरह से समझाते रहते हैं। तुम अगर दीन-दरिद्र हो, दुखी-पीड़ित हो, वे कहते हैं कि पुराने जन्मों का कर्म है, कट जाएगा, फिकर न करो, सब ठीक हुआ जाता है। कि भगवान कोई परीक्षा ले रहा है। यह परीक्षा का क्षण है, परेशान न होओ, निकल
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