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जितनी कामना, उतनी मृत्यु
__इस देश की जो सबसे अनूठी खोज है, जो मनुष्य-जाति के लिए इस देश का सबसे बड़ा दान है, वह है आवागमन से मुक्त होने की धारणा। मनुष्य-जाति के किसी और अंश ने कभी इस धारणा को नहीं उपजाया। पूरब ने, विशेषकर भारत ने इस धारणा को जन्म दिया कि हम बहुत बार पैदा हो चुके, और हर बार पैदा होकर हमने वही किया जो हम अभी कर रहे हैं। और हम फिर पैदा होना चाहते हैं, और हम फिर यही करेंगे। तो हमारी मूढ़ता हद्द की होगी! क्योंकि इतनी पुनरुक्ति तो मूढ़ ही कर सकता है। जिसमें थोड़ी बुद्धि है, वह पुनरुक्ति क्यों करेगा? वह कहेगा, यह चाक, जिसमें में बंधा हुआ घूम रहा हूं, अब बंद होना चाहिए।
तो बुद्ध उससे कहने लगे, तेरी आयु हो चुकी, लेकिन तेरी वासना नहीं चुकती? यम के मुंह में बैठा है, फिर भी जीवन की आकांक्षा करता है?
सो करोहि दीपमत्तनो खिप्पम वायम पंडितो भव ।
मैं तुझसे फिर कहता, बुद्ध ने कहा, फिर-फिर कहता हूं कि तू अपने लिए द्वीप बना, उद्योग कर, पंडित बन।
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निद्धन्तमलो अनंगणो न पुन जातिजरं उपेहिसि ।।
मल धो डाल, निर्दोष बन, मैं तझे आशीष देता हं कि अगर तू थोड़ा उद्योग करे तो फिर तेरा न कोई जन्म होगा और न फिर तेरी कोई मृत्यु होगी। फिर तू जन्म और जरा को प्राप्त नहीं होगा।
निद्धन्तमलो अनंगणो न पुन जातिजरं उपेहिसि ।।
- यही बुद्धों का आशीष हो सकता है कि फिर तुम्हारा जन्म न हो। बड़ा अजीब सा लगेगा। क्योंकि हम तो लोगों को इस तरह का आशीष देते हैं कि तुम्हारी लंबी आयु हो, खूब जीओ, युग-युग जीओ। बुद्धपुरुष कहते हैं कि आशीष कि फिर कभी न जीओ, कि फिर कभी न जन्मो। क्योंकि जन्म होगा तो फिर मौत होगी। जन्म होगा तो फिर बुढ़ापा होगा। जन्म होगा तो फिर दुख-पीड़ा होगी। जन्म होगा तो फिर चिंता-संताप होगा। इसलिए जन्म ही न हो।
ऐसा आशीष दुनिया में कहीं और नहीं दिया गया है। सिर्फ इस देश में ऐसा आशीष दिया गया है कि तुम्हारा कभी जन्म न हो। तुम्हारा फिर कभी कोई आना न हो। तुम अनागामी हो जाओ।
बुद्ध ने कहा, आशीष मांगता है, तो ऐसा आशीष ले।
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