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________________ एस धम्मो सनंतनो तेरी आयु हो चुकी, पागल! तू यम के पास पहुंच चुका। मौत के जबड़े में पड़ा है। तेरा निवास स्थल भी नहीं है और, और मध्यांतर के लिए तेरे पास पाथेय भी नहीं है। तूने कोई घर बनाया नहीं भगवान में। तू यहीं जमीन पर मिट्टी के घर बनाता रहा, तूने चेतना का कोई घर न बनाया। तेरा निवास स्थल भी नहीं है। तू भटकेगा लोक-लोकांतर में, तू आवारा हो जाएगा। तूने कोई घर न बनाया, तूने कोई शरणस्थल न बनाया। तूने कोई छप्पर नहीं डाला। हम तो यहीं के छप्पर डालने में विदा हो जाते हैं, तो उस दूर के लोक में, उस आर्यभूमि में मकान बन ही नहीं पाता। बुद्ध अपने भिक्षुओं को कई नाम दिए हैं, उनमें एक नाम है-अनागार। जिसका यहां कोई घर नहीं। आगार का अर्थ होता है, घर। अनागार का अर्थ होता है, जिसका कोई घर नहीं, गृहविहीन। किसी ने बुद्ध से पूछा है कि आप अपने भिक्षु को अनागार क्यों कहते हैं? तो उन्होंने कहा, इसलिए कि यहां मेरा भिक्षु घर नहीं बनाता। मेरा भिक्षु कहीं और घर बनाता है, अदृश्य-लोक में। जहां चमड़ी की आंखों से कुछ भी नहीं दिखायी पड़ेगा। तुम्हारा दिव्य-चक्षु खुले तो दिखायी पड़ेगा। मेरे भिक्षु गृहविहीन नहीं हैं, लेकिन इनके घर किसी और ही लोक में निर्मित हुए हैं, कोई और आयाम में निर्मित हए हैं। यहां ये घरविहीन हैं। यहां इन्होंने घर बनाना छोड दिया, क्योंकि यहां तो घर सब रेत में बनाए सिद्ध होते हैं। ताश के पत्तों के घर हैं। गिर जाते हैं। क्या बनाने योग्य! कुछ ऐसा घर बनाओ जो गिरे न! कुछ ऐसा घर बनाओ जो सदा-सदा रहे, जो सदैव रहे। तो बुद्ध उससे कहने लगेः वासोपि च ते नत्थि... 'तेरा कोई घर भी नहीं है।' ...अन्तरा पाथेय्यम्पि च ते न विज्जति। 'और न मध्यांतर के लिए, बीच के मार्ग के लिए कोई पाथेय है।' उपनीतवयो...। तेरी उम्र चुक गयी; मगर तेरी वासना नहीं चुकती? तो फिर जन्मेगा, फिर गर्भ में पड़ेगा, फिर उतर आएगा, फिर आवागमन हो जाएगा, फिर यही चक्कर! जो तूने किया है बहुत बार, वही तू फिर-फिर करेगा। 206
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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