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________________ जितनी कामना, उतनी मृत्यु ईंधन के जलती है। बिन बाती बिन तेल। न तो उसके लिए बाती की जरूरत होती है, न तेल की जरूरत होती है। वह अपूर्व चमत्कार है। एक ऐसा ज्ञान तुम्हारे भीतर घटता है जो बाहर से आया ही नहीं। जो तुम्हारे भीतर ही आविर्भूत होता है। उस दशा को बुद्ध कहते हैं, पंडित। . सो करोहि दीपमत्तनो खिप्पम वायम पंडितो भव। अब तो तू द्वीप बन जा, अब तो तू पंडित बन; उद्योग कर, मल धो डाल और निर्दोष बन। अब और मल इकट्ठा मत कर। अब और जीवन मत मांग। अब तो कुछ मांग ही मत। अब तो जो मौत द्वार पर आ गयी है, उसे स्वीकार कर ले। स्वागत से स्वीकार कर ले। तथाता भाव को उपलब्ध हो। उसमें उतर जा, अन्यथा की कोई मांग न करते हए। __ मल का अर्थ होता है, मांग। मल का अर्थ होता है, ऐसा हो जाए, वैसा हो जाए। मल का अर्थ होता है, मैं जैसा चाहूं वैसा हो जाए। मल का अर्थ होता है, मैं की छाया, मैं की गंदगी। जहां अहंकार है, वहां मल है। अगर तुम अहंकार से जीते हो तो तुम म्लेच्छ। अगर तुम अहंकार से मुक्त हो गए तो निर्दोष, निर्मल। और जो निर्मल हो जाता है, उसने ही जाना। तो बुद्ध कहते हैं, 'निर्दोष बन, मल धो डाल। और तब तू दिव्य आर्यभूमि को प्राप्त करेगा।' - निद्धन्तमलो अनंगणो दिब्बं अरियभूमिमेहिसि। और श्रेष्ठ पुरुषों को जो उपलब्ध होता है, श्रेष्ठतम को जो उपलब्ध होता है, वह परमलोक, उसको बुद्ध कहते हैं-आर्यभूमि। श्रेष्ठों का देश। वह आकाश, जो उन्हीं को मिलता जो सारे मल को धो डाले हैं। उस ऊंचाई पर वे ही उठ पाते हैं जिनका सारा मल कट गया है। तू मुझसे आशीष मांग, बुद्ध ने कहा, जीवन का नहीं, मोक्ष का। तू मुझसे आशीष मांग-क्या इस जमीन पर पैदा होने का आशीष मांगता है! आशीष मांग कि आर्यभूमि में तेरा जन्म हो। खयाल रखना, आर्यभूमि का मतलब कोई हिंदुस्तान नहीं। आर्यभूमि का अर्थ होता है, दिव्यलोक, परमात्मा का लोक, भगवत्ता का लोक। आशीष ही मांगना है, तो बुद्ध कहते हैं, ऐसा कुछ मांग। उपनीतवयो च दानिसि सम्पयातोसि यमस्स सन्तिके। वासोपि च ते नत्थि अन्तरा पाथेय्यम्पि च ते न विज्जति।। .. 205
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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