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________________ जितनी कामना, उतनी मृत्यु मगर, समझना। बहुत दुख में ही शायद तुम जाग सको। सुख में तो आदमी सो जाता है, दुख में जाग सकता है। सुख में तो नींद आ जाती है, पीड़ा में नींद नहीं आती। बुद्ध ने ऐसी चोट की है उसके कलेजे पर कि अगर कलेजा होगा, तो क्षार-क्षार हो ही जाएगा। तेरे पास पाथेय कुछ भी नहीं है, तू भिखारी है। और अभी भी तू आशीष मांग रहा है व्यर्थ के लिए। अब तो कुछ सार्थक कर ले, तू अपने लिए द्वीप बना। यह बुद्ध का विशिष्ट वचन है-तू अपने लिए द्वीप बना। सो करोहि दीपमत्तनो...। देखते हैं द्वीप, सागर के बीच छोटा सा द्वीप, सबसे अलग-थलग, महाद्वीप से टूटा अपने में जीता है। बुद्ध बार-बार कहते हैं-द्वीप बनो। द्वीप का अर्थ है, सब संबंधों से मुक्त हो जाओ, जैसे सागर में कोई छोटा द्वीप। किसी से जुड़े मत रहो, असंग हो जाओ। द्वीप का अर्थ है, असंग हो जाओ, अकेले हो जाओ। - उस बूढ़े से उन्होंने कहा कि अब तू अकेला हो जा। अब तू भूल ही जा कि कोई तेरा बेटा है, कोई तेरी पत्नी है, कोई तेरे पोते हैं, कोई तेरे नाती हैं, कुछ तेरे पास धन है, सब भूल जा। यह देह भी तेरी नहीं, इसके लिए तो लेने यमदूत आ गए हैं। यह मन भी तेरा नहीं, यह भी सब उधार है। अब तू सारे संबंध छोड़ दे। अब तू असंग हो जा। इस मृत्यु की आखिरी घड़ी में तू एक काम कर ले-अपने सब नाते तोड़ दे, अपने सब सेतु गिरा दे; असंग और अकेला, द्वीप की भांति हो जा। ऐसा असंग और अकेला होकर तू मुक्त हो जाएगा। तो फिर मृत्यु मोक्ष बन जाती है। समझना। जो अकेला होकर मरता है, वह मुक्त हो जाता है। जो संबंधों से जुड़ा मरता है, वह फिर पैदा हो जाता है, फिर जीवन में लौट आता है। जब तक तुम्हें दूसरे की जरूरत है, तब तक तुम वापस आते रहोगे। तब तक वापस आना ही पड़ेगा। क्योंकि दूसरा तो यहीं मिलता है और कहीं मिलता नहीं। - पति मरते वक्त अगर पत्नी की आकांक्षा रखता है, फिर लौट आएगा। पत्नी मरते वक्त पति की आकांक्षा करती है, फिर लौट आएगी। तुम्हारी आकांक्षा तुम्हें लौटा लाएगी। क्योंकि लौटते तो केवल वे ही नहीं हैं जिनकी दूसरे से कोई आकांक्षा न रही। अब लौटने की कोई जरूरत न रही। संसार का अर्थ है, दूसरे की मौजूदगी; जहां दूसरा उपलब्ध होता है। पत्नी मिल सकती है, पति मिल सकता है, मित्र मिल सकता है, बेटे-बेटियां मिल सकतीं, जहां दूसरा मिल सकता है वह स्थल है संसार। और मोक्ष का अर्थ है, जहां तुम निपट अकेले हो, कैवल्य की दशा। जहां तुम्हारे अतिरिक्त कोई भी नहीं। तुम हो और बस तुम हो। जहां अनंत तक तुम ही तुम हो और कोई दूसरा नहीं है। जहां तुम हेलो भी न कह सकोगे, जयराम जी भी न कह सकोगे किसी से। उस दशा में जाने की तैयारी 203
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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