SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो एक महिला दो-चार दिन पहले संन्यास ली, मैंने पूछा, कुछ पूछना तो नहीं है ? उसने कहा, नहीं, और तो सब ठीक है, मेरे लड़के पढ़ते-लिखते नहीं। स्कूल ही नहीं जाते, और जाते भी हैं तो कुछ पढ़ाई-लिखाई नहीं करते, कुछ आशीर्वाद दे दीजिए। इस तरह की बातों के आशीर्वाद मांगे जाते रहे हैं! और देने वाले देते रहे और लेने वाले लेते रहे! इससे एक बड़ी भ्रांति पैदा हो गयी है। बुद्धपुरुष के पास जाकर किस बात का आशीर्वाद मांगना, इसकी भी व्यवस्था हम भूल गए हैं। बुद्ध से तो एक ही बात का आशीर्वाद मांगा जा सकता है कि ज्ञान हो, कि ध्यान हो, कि समाधि हो। क्योंकि बुद्ध के सामने तो वही धन है। और तो सब व्यर्थ है। और तो तुम कूड़े-करकट का आशीर्वाद मांग रहे हो। तुम ऐसे समझो कि किसी चिकित्सक को जाकर कहो कि कुछ आशीर्वाद दे दो कि टी.बी. हो जाए, कि आशीर्वाद दे दो कि कैंसर हो जाए। तो जैसे यह मूढ़तापूर्ण लगेगा चिकित्सक को, वैसे ही बुद्ध को भी यह मूढ़तापूर्ण लगता है कि कोई मांगता है कि जीवन थोड़ा लंबा हो जाए। बुद्ध तो जीवन को रोग की तरह देखते हैं-दुख और दुख और दुख। बुद्ध कहते हैं, जन्म दुख, जवानी दुख, बुढ़ापा दुख, मृत्यु दुख, जीवन का सारा स्वाद दुख का है। इसको लंबाने का क्या अर्थ? तुम कैंसर को लंबाना चाहते हो? क्षयरोग को लंबाना चाहते हो? बुद्ध ने उसे काफी झकझोरा होगा। उस मरते आदमी के साथ बड़ी कठोरता की। उनकी करुणा अपार रही होगी। अन्यथा मरते पर तो वह सोचते कि अब जाने भी दो। यह जिंदगीभर तो जागा नहीं, अब क्या जागेगा? छोड़ो भी। अब मरते वक्त इसको शांति से मर जाने दो। नहीं, लेकिन बुद्ध ने उसे मरते वक्त झकझोरा। क्यों? क्योंकि सत्य कुछ ऐसी बात है कि कभी-कभी क्षण में हो जाती है। इसलिए एक क्षण भी खोया नहीं जा सकता। सत्य कुछ ऐसी बात है कि अगर चोट लग जाए, अगर आदमी हिम्मतवर हो, साहसी हो, हृदय वाला हो और चोट खा जाए तो एक क्षण में भी घट जाता है। इसलिए आखिरी बूंद तक जीवन की बुद्धपुरुष चेष्टा करते हैं कि तुम जग जाओ। वे अंतिम तक तुम्हें झकझोरे जाते हैं। . ___ कहा कि तू प्रयाण के लिए तैयार है और तेरे पास पाथेय कुछ नहीं है। खूब दुखी कर दिया होगा उस आदमी को। एक तो मौत, एक तो मर रहा हूं, जो था वह छूट रहा है-बेटे, बेटी, परिवार, धन, संपत्ति, जीवनभर की कमाई सब छूटी जा रही है-और एक यह सज्जन आ गए! और यह सज्जन कह रहे हैं कि तेरे हाथ में कुछ नहीं है, तू बिलकुल खाली जा रहा है, और यात्रा तो होने वाली है, मौत आ गयी, ये यमदूत खड़े हैं, पालकी तैयार है, जल्दी बिठाकर तुझे ले जाएंगे। और तेरे पास रास्ते के लिए पाथेय भी नहीं है, और तो बात छोड़। ऐसा भी नहीं है कि थोड़े-बहुत पैसे रास्ते के लिए डाल दिए हों तूने, वह भी तेरे पास नहीं हैं। तेरे पास ध्यान की कौड़ी भी नहीं है। खूब दुखी कर दिया होगा इस आदमी को। 202
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy