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जितनी कामना, उतनी मृत्यु
इस वृद्ध को ही बुद्ध ने आज के पांच सूत्र कहे थे, ये पांच गाथाएं
पांडुपलासो'ब दानिसि यमपुरिसापि च तं उपट्ठिता। उय्योगमुखे च तिट्ठसि पाथेयम्पि च ते न विज्जति।।
'तू पीले पत्ते के समान हो गया, यमदूत तेरे पास खड़े हैं, तू प्रयाण के लिए तैयार है और तेरे पास पाथेय कुछ भी नहीं है? अतः तू अपने लिए द्वीप बना, उद्योग कर, पंडित बन, मल धो डाल और निर्दोष बन; तब तू दिव्य आर्यभूमि को प्राप्त करेगा।'
सो करोहि दीपमत्तनो खिप्पम वायम पंडितो भव। निद्धन्तमलो अनंगणो दिब्बं अरियभूमिमेहिसि।।
'तू पीले पत्ते के समान हो गया।'
तो बुद्ध पहले तो उसे यह कहते हैं कि तेरी मौत आ गयी, अब तू जीवन की बात छोड़। कल तक तो त टाल सकता था, स्थगित कर सकता था कि आज थोडे ही मौत है-ऐसे ही तो हम सब टाल रहे हैं। हम कहते हैं, आज तो जिंदा हैं, कल जब आएगी मौत तब देखेंगे, अभी आती कहां? अभी तो जवान हैं, बूढ़े होंगे तब देखेंगे। बूढ़ा भी सोचता है, अभी इतने बूढ़े थोड़े ही हो गए हैं कि मर ही जाएंगे। कभी कोई आदमी इस तरह तो सोचता ही नहीं कि मर जाऊंगा। वह यही सोचता है, जीयूंगा, अभी तो बहुत जीयूंगा। अभी क्या बिगड़ा है, अभी तो सब ठीक है।
बुद्ध उससे कहने लगे कि अब तक तो तू टाल सकता था, आज टालने की कोई जगह न रही, तू पीले पत्ते के समान है और यमदूत तेरी खाट के आसपास खड़े हैं, मैं उन्हें देख रहा हूं, चाहे तुझे दिखायी न पड़ते हों। मौत आ गयी। अब तू जीवन के संबंध में सोचना छोड़, अब तू मौत के संबंध में सोच ले। जीवन तो चूका ही चूका, गया सो गया, अब उस पर कुछ किया नहीं जा सकता; तूने मुझे बहुत देर में बुलाया है, बुद्ध ने कहा होगा; मरते वक्त बुलाया है। मगर अभी भी जो थोड़ी, घड़ी दो घड़ी बची हैं, पल दो पल बचे हैं, इनका भी ठीक उपयोग कर ले, तो कुछ हो सकता है। यमदूत तेरे पास आ खड़े हैं, जरा गौर से देख। मौत आ ही गयी है, मेरे आशीष कुछ काम न पड़ेंगे। और इस तरह के आशीष मैं देता भी नहीं। ___ मेरे पास लोग आ जाते हैं इस तरह के आशीष मांगने। इस देश में असंतों की इतनी लंबी परंपरा है कि लोग यही भूल गए हैं कि किस बात के लिए आशीष मांगना
और किस बात के लिए आशीष नहीं मांगना। कोई आ जाता है कि अदालत में मुकदमा है, आशीर्वाद दे दीजिए कि मुकदमा जीत जाऊं। कोई आ जाता है कि लड़के को नौकरी नहीं मिल रही है, आशीष दे दीजिए कि लड़के को नौकरी मिल जाए।
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