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________________ एस धम्मो सनंतनो रह जाते हैं। बचकानापन और बच्चों की भांति हो जाने का फर्क खयाल में ले लेना। बचकानेपन का अर्थ है, आदमी बढ़ा ही नहीं। और पुनः बच्चों जैसे हो जाने का अर्थ है, आदमी इतना बढ़ा, इतना बढ़ा कि फिर सरल हो गया। कि जटिलता की व्यर्थता दिखायी पड़ गयी। तो बच्चों जैसा हो जाना तो बड़ा बहुमूल्य है, अमूल्य है; और बचकाने रह जाना बड़ा दुर्भाग्य है। बच्चों जैसे हो जाना तो सौभाग्य है और बचकाने रह जाना बड़ी से बड़ी दुर्भाग्य की दशा है। __ अब यह आदमी सौ वर्ष का हो गया। यह पीले पत्ते की तरह है। जरा सा हवा का झोंका, हवा के झोंके की भी जरूरत न पड़ेगी, यह गिरेगा, बिना झोंके के भी गिर जाएगा। यह अपने पकने के कारण ही गिरने वाला है। मौत के किनारे खड़ा। घड़ी दो घड़ी की बात है। इस सीमा पर खड़े होकर भी पीछे देख रहा है, आगे नहीं देख रहा है। जीवन को जकड़ रहा है, पकड़ रहा है और थोड़ी देर रुक लूं, और थोड़ी देर रुक लूं। खयाल करो, जब आदमी और थोड़ी देर रुकना चाहता है तो यह.किस बात का सबूत होता है? यह इस बात का सबूत होता है कि जीवन को जी नहीं पाया। जीआ जरूर, ऊपर-ऊपर। जीवन से पहचान न हुई। जीवन का सार इसके हाथ न लगा। ऐसे ही ऊपर से बह गया जीवन। अगर ठीक से जी लिया होता, तो अब जीवन को न पकड़ता। अब तो खुशी से छोड़ने को राजी हो जाता। धन्यवाद देता कि चलो ठीक हुआ। एक दुख-स्वप्न समाप्त हुआ, एक व्यर्थ की दौड़ का अंत आ गया। और यह भविष्य की तरफ देखता, यह पीछे की तरफ लौटकर नहीं देखता। . जीवन को पकड़ने वाला आदमी सोचेगा, मेरे बेटे, उनकी शादी करनी है, उनके बेटों के बेटे, और अब तो पोते भी हो गए और नाती और सब, इनका क्या होगा? इतना धन कमाया, इसका क्या होगा! क्या करूंगा, क्या नहीं करूंगा? अभी यह मौत बीच में आ गयी, अभी तो बहुत काम अधूरे पड़े हैं। वह पीछे लौटता है, और पीछे का फैलाव देखता है। स्वभावतः सौ साल में उसने हजारों बातें शुरू की और हजारों बातें अधूरी रह गयीं, कोई बात पूरी तो कभी होती नहीं। क्योंकि एक में से दूसरी निकल आती है, दूसरी में से तीसरी निकल आती है और अधूरी ही रहती है। तो हजार काम अधूरे रह गए हैं। वह चाहता है, थोड़ी देर और रुक जाता तो सब पूरा कर लेता। जैसे कि कोई कभी पूरा कर पाया है! वह आगे नहीं देखता। ऐसे रोते और झीखते ही मरता है। इसलिए मृत्यु से भी चूक जाता है; जीवन से तो चूका ही, मृत्यु से भी चूक जाता है। ___ अगर तुम जीवन को जागकर देख लो तो भी सत्य उपलब्ध हो जाए। अगर तुम मृत्यु को जागकर देख लो तो भी सत्य उपलब्ध हो जाए। क्योंकि सत्य तो जागकर देखने में उपलब्ध होता है; किस चीज के प्रति जागे, इससे बहुत अंतर नहीं पड़ता। 200
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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