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________________ जितनी कामना, उतनी मृत्यु बुद्ध से कभी किसी ने कहा था कि आप इतनी कठोर बातें कह देते हैं; तो बुद्ध ने कहा, क्योंकि मैं तुम्हारा कल्याण-मित्र हूं-यह बड़ा प्यारा शब्द बुद्ध ने उपयोग किया, कल्याण-मित्र-अन्यथा मुझे क्या प्रयोजन है कि तुम्हें चोट करूं। तुम्हें चोट करने में मुझे कुछ मजा नहीं आ रहा है। करुणा के कारण चोट कर रहा हूं, कल्याण-मित्र हूं। ___ जरा सोचो यह घटना, आदमी मर रहा है, अभी तो उससे कहना था, बिलकुल न घबड़ाओ, अभी कहां मौत! अभी तो तुम जवान हो, अभी तो तुम्हारे चेहरे पर कैसी रौनक जवानी की, अभी कहां मरना है! अभी उठ बैठोगे, सब ठीक हो जाएगा। बीमारी है, आयी है, चली जाएगी, घबड़ाओ मत। और तुम्हारा पुण्य तो काफी बड़ा है। इतने बड़े पुण्य से तुम्हारी रक्षा होगी ही। परमात्मा तुम पर प्रसन्न है। ऐसा बुद्ध कहे होते तो शायद यह बूढ़ा प्रसन्न होता, शायद और दान दिया होता। और दो-चार दिन बुद्ध के लिए निमंत्रित किया होता। लेकिन बुद्ध ने तो बड़ी अजीब बात कही, उस मरते हुए बूढ़े को कहा कि अब तु जीवन का मोह छोड़। मूढ़ता काफी हो चुकी। सौ वर्ष कुछ कम नहीं होते। इतने दिन भटक लिया अंधा होकर, अब तो आंखें खोल। इस जीवन में धरा क्या है जिसकी तू मांग कर रहा है। इससे मिला क्या है? मिलेगा क्या? कब किसको क्या मिला है? हाथ आखिर राख से भरे रह जाते हैं। होश को सम्हाल, बुद्ध कहने लगे, कुछ पुण्य-पाथेय इकट्ठा कर ले, तू बिलकुल भिखारी है। स्वर्णकार बड़ा धनी था। वह उस श्रावस्ती नगर का सबसे बड़ा सुनार था, सबसे बड़ा सर्राफ था। उसके पास धन बहुत था। लेकिन बुद्ध उसे कह रहे हैं, तू भिखारी है, क्योंकि तेरे पास पुण्य-पाथेय नहीं। तेरे पास ध्यान तो बिलकुल नहीं है, यह धन क्या काम पड़ेगा? यह जरा भी काम नहीं पड़ेगा। यह धन तो यहीं पड़ा रह जाएगा, तुझे अकेला जाना होगा। कुछ एक ऐसी बात सीख ले जो तेरे साथ जा सके, कोई तेरे संग हो सके-न पत्नी होगी, न बेटे होंगे, न धन होगा, न पद; न यह बाहर से मिलने वाली प्रतिष्ठा होगी, आत्मप्रतिष्ठा कर ले, अपने में ठहर जा; कुछ अपने स्व को जगा ले, ताकि मौत की अंधेरी रात से तू रोशनी लिए गुजर जाए। एक-एक शब्द समझने जैसा है। उससे कहा, तू बूढ़ा हुआ, तेरा शरीर पीले पत्ते के समान पक गया है और अभी भी तेरी वासना जवान की? इसे खयाल करना। शरीर तो बूढ़ा हो जाता है, वासना जवान ही बनी रहती है। और वासना अगर जवान बनी रहती है तो तुमने बाल धूप में पका लिए। फिर तुम्हारे जीवन में कोई प्रौढ़ता नहीं है। तुम्हारे जीवन में कुछ समझ, कोई सार जीवन का तुम्हारे हाथ नहीं लगा। तुम बूढ़े तो हो गए, लेकिन बचकाने के बचकाने हो। खयाल करना, संत बच्चों की भांति हो जाते हैं और असंत बचकाने के बचकाने 199
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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