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________________ एस धम्मो सनंतनो अनुकूल तो जो सत्य होगा तो असत्य हो जाएगा। तुम असत्य हो, तुम्हारे अनुकूल सत्य हुआ कि असत्य हुआ। और सांत्वना तुम्हें उसी से मिलती है जो तुम्हारे अनुकूल हो। जो तुम्हारे प्रतिकूल हो, उससे चोट लगती है। खयाल रखना, सत्य में कोई चोट नहीं है, क्योंकि तुमने असत्य का अभ्यास कर रखा है, इसलिए चोट है। सत्य जटिल नहीं है। सत्य तो बड़ा सरल है। लेकिन तुम जटिल हो। सत्य तो सीधा, साफ-सुथरा है। लेकिन तुम बड़ी उलझन और बड़ी गांठों से भरे हो। तो सत्य की चोट लगती है। संत चोट करते हैं। क्योंकि चोट ही एकमात्र आशा है, चोट में ही आश्वासन है, शायद तुम जग जाओ। इसलिए संतों को हम धन्यवाद भी नहीं दे पाते। और जब तक हम धन्यवाद देने को तैयार होते हैं, तब तक संत जा चुके होते हैं। जीसस को तुमने धन्यवाद दिया ? बुद्ध को तुमने धन्यवाद दिया? । हां, फिर मर जाने के बाद तुम हजारों साल तक पूजा करते हो। यह पश्चात्ताप है। तुम्हारी पूजा पश्चात्ताप है। तुम पश्चात्ताप करते हो कि हम धन्यवाद नहीं दे पाए, चूक गए। और यह सदा हुआ है। असंतों की तुम पूजा करते हो। तुम जरा अपने मन की बात पहचानना, परखना। तुम किसे संत कहते हो? जिसके पास जाकर तुम्हें सांत्वना मिल जाए। तुम्हारा संत सांत्वना का नाम है। जो तुम्हारी पीठ थपथपा दे। जो तुमसे कह दे, घबड़ाओ मत। जो तुमसे कह दे, मेरा हाथ तुम्हारे सिर पर है। जो तुमसे कह दे, मेरी आशीष तुम्हारे साथ है। जो तुमसे कह दे कि प्रार्थना कर लो, परमात्मा सब ठीक कर देगा। कि यह मंत्र जपलो, कि यह ताबीज ले लो, इससे सब ठीक हो जाएगा। जो तुम्हें सस्ते नुस्खे दे देता है। और सस्ते नुस्खों में तुम सो जाते हो। जो तुम्हें सांत्वना देता है, वह तुम्हारा दुश्मन है। क्योंकि उसकी सांत्वना के कारण ही तुम जागोगे नहीं। उसकी सांत्वना एक तरह की शामक दवाई है, ट्रैक्वेलाइजर है। अच्छी लगती है, मीठी लगती है। पर जो मीठा लगता है, वह सभी अमृत थोड़े ही होता है। सच तो यह है कि जिसको भी तुम्हारे गले के भीतर जहर उतारना हो, उसे जहर पर मिठास का लेप करना पड़ता है। सांत्वना मीठा जहर है। मारेगा; इससे तुम जागोगे नहीं। इसलिए बुद्धपुरुष चोट करते हैं। उनके वचन तीर की तरह छिद जाते हैं। जिनमें सामर्थ्य होती है सहने की, वे रूपांतरित हो जाते हैं, और जो कायर हैं, भाग खड़े होते हैं। वे नाराज हो जाते हैं सदा के लिए। वे फिर कभी बुद्ध के चरणों में नहीं आते। वे कभी उनके पास नहीं फटकते। वे सदा के लिए दुखी होकर नाराज हो जाते हैं, वे दुश्मन हो जाते हैं। __तुम जरा खयाल करना, तुम अपने मित्रों के दुश्मन हो जाते हो, अपने दुश्मनों को अपना मित्र समझ लेते हो। 198
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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