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________________ एस धम्मो सनंतनो आदमी ने पशुओं को भयभीत करके दूर कर दिया है, और पशुओं को दूर करके एक बड़ी महत्वपूर्ण बात खो दी, प्रकृति से संबंध खो दिया है। तुमसे तो वृक्ष भी डरते जब तुम वृक्षों के पास जाते हो। __अभी वैज्ञानिक इस पर काफी परिशोध करते हैं। उन्होंने यंत्र भी बना लिए हैं, वृक्षों में लगा देते हैं, और वृक्ष से खबर आने लगती है। जैसे कि तुमने कभी कार्डियोग्राम लिया हो, तो कागज पर ग्राफ बन जाता है कि हृदय की धड़कन कैसी है? ऐसे ही वृक्ष के भीतर कैसी तरंग चल रही है, उसका ग्राफ बन जाता है। जैसे ही वृक्ष देखता है कि कोई आदमी आ रहा है, उसकी तरंग बदल जाती है। फिर आदमी-आदमी से बदलती है। अगर वह देखता है कि लकड़ी काटने वाला कुल्हाड़ी लिए चला आ रहा है-अभी उसने काटी नहीं, अभी दूर ही है-तत्क्षण उसकी बेचैनी बढ़ जाती है। तरंगें बड़ी जोर की बनने लगती हैं, वह बहुत घबड़ाया हुआ हो जाता है। उसने देखा, माली आ रहा है पानी लिए हुए, उसकी तरंगें बड़ी शांत हो जाती हैं। कुछ आश्चर्य नहीं है कि संत फ्रांसिस की कहानियां सच ही रही हों। कछ आश्चर्य नहीं है कि महावीर और बुद्ध के जीवन के उल्लेख सही ही रहे हों। अर्थ तो उनका स्पष्ट है कि महावीर के पास पशु-पक्षी आकर बैठ जाते, सिंह भी आकर बैठ जाता। इतनी शांत है दशा कि सिंह को भी तरंग पकड़ लेती होगी। कि बुद्ध जिस जंगल से निकलते हैं, वहां सूखे वृक्ष हरे हो जाते हैं। इतने तरंगित हो जाते होंगे बुद्ध के आगमन से। __तो कुछ भी चकित होने का कारण नहीं है। धीरे-धीरे तुम्हारी तरंग जब ठहरती जाएगी और जब हम यहां एक वातावरण बनाने में सफल हो जाएंगे, जहां एक भी आदमी से उन्हें भय न हो, तो तुम देखोगे, चकित होकर देखोगे कि जैसे तुम यहां बैठे हो, ऐसे ही बहुत सी चिड़ियां भी, पक्षी भी आकर बैठ गए हैं। तुम्हारे कारण भय बना रहता, घबड़ाहट बनी रहती। हिंसा तुम्हारे भीतर है, तो उसकी तरंग है चारों तरफ। उस तरंग के हट जाने पर एक संबंध जुड़ता है प्रकृति से।। ___ कहते हैं, संत फ्रांसिस से एक आदमी पूछने आया। नदी के किनारे फ्रांसिस खड़े थे। उस आदमी ने पूछा कि हमने सुना है कि पशु-पक्षी भी आपकी बातें सुनने आते हैं, आपको इस संबंध में क्या कहना है? फ्रांसिस ने कहा, मैं क्या कहूं, यहां कोई पशु-पक्षी है? कोई है भाई यहां? उन्होंने जोर से आवाज मारी। वहां कोई पशु-पक्षी नहीं था, लेकिन मछलियों ने सिर ऊपर निकाला-पूरी नदी पर मछलियों ने सिर ऊपर कर लिया। उन्होंने कहा, इनसे पूछ लो। अब मैं क्या प्रमाण दूं, उन्होंने कहा, इनसे पूछ लो। यह हो सकता है, क्योंकि सारा अस्तित्व एक ही प्राण से आंदोलित है। पशु-पक्षी के भीतर भी हमारे जैसी ही आत्मा है। वृक्ष के भीतर भी हमारे जैसे ही 190
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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