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धर्म अनुभव है
अब तुम यहां बैठे हो, डेढ़ घंटा! तुम कुछ न कर सकोगे, तो खांसोगे । और एक खांसा तो दूसरे को अचानक लगेगा कि उसको भी खांसी आ रही है। मनुष्य करीब-करीब अनुकरण से जीता है। डार्विन गलत नहीं है, आदमी बंदर की औलाद है।
तुमने कभी देखा, रास्ते पर तुम चले जा रहे हो और एक आदमी पेशाबघर में चला गया, अचानक तुम्हें खयाल आया कि अरे, तुम्हें भी पेशाब लगी है। अभी देखो, मैंने अभी पेशाब शब्द कहा, तुममें से कई को लग गयी होगी। एकदम खयाल आ जाएगा। तुमने देखा, अगर कोई नीबू का नाम ले दे तो जीभ पर लार आने लगती है। नाम से! आदमी ऐसा अनुकरण से भरा हुआ है।
तो मैत्रेय जी तुम्हें रोकते हैं। मुझे कोई बाधा पड़ेगी, ऐसा नहीं है। लेकिन तुम शांत बैठे हो तब भी तुम मुझे नहीं सुन पाते, और अगर तुम खांसा-खांसी में उलझ गए तब तो तुम बिलकुल ही नहीं समझ पाओगे। मुझे क्या बाधा पड़ेगी ? लेकिन तुम जिस प्रयोजन से यहां बैठे हो, उसमें खलल पड़ जाएगा। तुम्हारा मन तो बड़े जल्दी ही डांवाडोल हो जाता है। तुम्हें तो बड़ी छोटी-छोटी बातों में विघ्न पड़ जाता है । तुम्हें तो निर्विघ्न रहना इतना कठिन है। इसलिए तुमसे कहते हैं ।
रह गयी गौरैए. चिड़ियों की बात, तो वह कोई मैत्रेय जी की तो सुनेंगी नहीं ! उनसे वह कितना ही कहें, उनकी जो मौज होगी वैसा करेंगी। लेकिन चिड़ियां माफ की जा सकती हैं। उनका यहां आ जाना भी सुखद है। उनका आना इसी बात की ख़बर देता है कि तुम शांत बैठे हो । उनका आना इसी बात की खबर देता है कि उन्हें तुम्हारी चिंता नहीं । मूर्तिवत, वह तुम्हें यही समझती हैं कि बैठे हैं— संगमरमर की मूर्तियां | कोई अड़चन नहीं, वे यहां खेलकूद करके, शोरगुल मचाकर अपना चली जाती हैं। उनका यह कभी-कभी आ जाना तुम्हारी शांति का प्रतीक है। सुंदर है।
फिर तुम पूछते हो कि 'हम चकित हुए ! '
चकित होने का इसमें कुछ भी नहीं है। मेरे बोलने से गौरैया चिड़िया परेशान नहीं हो रही है, तो गौरैया चिड़िया के चीं-चीं करने से मुझे क्यों परेशान होना चाहिए ! कम से कम इतना तो गौरव मुझे दोगे, जितना गौरैया चिड़िया को देते हो ! मेरे हाथ पर बैठने में उसे कुछ अड़चन नहीं हो रही है, तो मुझे क्यों अड़चन होनी चाहिए ? वह बैठ भी इसीलिए सकी कि उसे प्रतीत हो रहा है कि अड़चन नहीं होगी ।
धीरे-धीरे जैसे-जैसे तुम शांत होने लगोगे, तुम पाओगे, वे तुम्हारे सिर पर भी आकर बैठने लगीं, हाथ पर आकर बैठने लगीं, जैसे-जैसे उन्हें यह भरोसा आ जाएगा कि यहां भलेमानुस बैठे हैं, इनसे कुछ भय का कारण नहीं है। तुमसे भय है, डर है कि तुम उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हो, उस भय के कारण वे दूर-दूर हैं। जैसे-जैसे तुम्हारी तरफ से निर्भय की तरंग उठने लगेगी, फिर दूर रहने का कोई कारण नहीं रह जाता ।
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