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एस धम्मो सनंतनो
नर्तक इकट्ठे होने हैं, सब मौजूद हैं। यह जगत लीला है। यह जगत बड़ा उत्सव है।
आखिरी प्रश्नः
प्रायः रोज ही मैत्रेय जी हमें सचेत करते हैं कि प्रवचन के बीच खांसने से भगवान को बाधा पहुंचती है, लेकिन कल के प्रवचन के दरम्यान कई गौरैए चिड़िए चीं-चीं करती हुई आपके इर्द-गिर्द मंडराती रहीं और फिर उनमें से एक आपके बाएं हाथ पर और दूसरी माइक पर बैठ गयी, और आश्चर्य कि उससे आपकी मुद्रा या प्रवचन-प्रवाह में रत्तीभर भी फर्क नहीं पड़ा। और गौरैए भी ऐसे आयीं गयीं जैसे किसी शाख पर आती-जाती हों और ऐसा लगा कि सब कुछ अपनी जगह स्वाभाविक रूप में स्थित है, यद्यपि हम श्रोतागण अवश्य चकित रह गए! इस पर थोड़ा प्रकाश डालने की अनुकंपा करें।
मैत्रेय जी को तुम्हें कहना पड़ता है, न खांसो-और तमने एक मजे की बात
- देखी, तुम उनकी मान भी लेते हो और खांसते भी नहीं। तो खांसना करीब-करीब झूठ है। और तुमने यह देखा, एक आदमी खांसे, तो दूसरा खांसेगा, तीसरा खांसेगा, चौथा खांसेगा, एक श्रृंखला पैदा होती है।
और खांसने के पीछे कुछ कारण हैं। खांसने के पीछे खांसी शायद ही कारण होती है-सौ में एक मौके पर। तब तो तुम रोक ही नहीं सकते, चाहे मैत्रेय जी लाख सिर मारें। तुम क्या करोगे! कोई भी क्या करेगा! लेकिन निन्यानबे मौकों पर तुम रोक पाते हो। जो तुम रोक पाते हो वह झूठी है।
पर झूठी खांसी क्यों आती है? झूठी खांसी इसलिए आती है कि तुम खाली बैठे हो। खाली बैठे तुम्हें बड़ी बेचैनी होती है। आदमी, देखा, खाली बैठे-बैठे सिगरेट पीने लगता है। खाली बैठे-बैठे उसी अखबार को दुबारा पढ़ने लगता है। खाली बैठे-बैठे भूख लग आती है, जाकर फ्रिज खोलकर कुछ खाने लगता है। खाली नहीं बैठ सकते। खाली बैठना बड़ा कठिन है। कुछ न कुछ तुम करोगे।
जब तुम कभी ध्यान के लिए बैठोगे थोड़ी देर को, तो तुम कहोगे, कहीं चींटी चढ़ने लगी-कहीं कोई चींटी नहीं है, देखो, चींटी नहीं चढ़ रही है—फिर कहीं पैर में खुजलाहट आ गयी, कहीं हाथ सुन्न हो गया, कहीं कान में कुछ चढ़ने लगा, कहीं भीतर कुछ होने लगा, हजार चीजें होने लगीं। ऐसे कुछ भी नहीं होता। ये हजार चीजें तुम्हारे मन की जो बेचैनी की आदत है, उसके कारण होती हैं।
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