________________
धर्म अनुभव है
आत्मा है। शरीर का भेद है, आत्मा का तो कोई भेद नहीं। वृक्ष ने वृक्ष का शरीर लिया है, पक्षी ने पक्षी का शरीर लिया है, तुमने आदमी का शरीर लिया है। यह फर्क ऊपर-ऊपर है। यह वस्त्रों का भेद है—किसी ने लाल रंग के कपड़े पहने हैं, किसी ने नीले रंग के कपड़े पहने हैं, किसी ने सफेद कपड़े पहन रखे हैं, या कोई नग्न खड़ा है। किसी ने पूर्वीय ढंग के कपड़े पहने हैं, किसी ने पाश्चात्य ढंग के कपड़े पहने हैं, मगर यह कपड़ों का फर्क है, भीतर जो छिपा है, वह तो एक ही है।
बिजली के खंभे पर बैठी चिड़िया ठिनक-ठिनक गाती है किस दिल से भरकर रखी है कितनी करुणा भर लाती है पंख फुदकते, चोंच मटकती कद-कूद बल खाती है वह जीने के जंतर-मंतर पागलनी-सी समझाती है वह ऊपर है आकाश उघाड़ा नीचे धरती बिना ढंकी
और मध्य में तेरी महिमा तारों से हर ओर टंकी किसके महल झोपड़ी किसकी किसकी फूलन कांटे किसके
आंख मूंद लेने पर यह चलते दिखते सन्नाटे किसके यह गिरधारी की कमरी-सी यह राधा के वलय बंद-सी यह प्रतिभा की सूझों वाले रस भर आए अमर छंद-सी ऊंची-नीची मैली-उजली यमुना की पागल हिलोर-सी गगन तलक उठ रही पवन के बिना बंधे उन्मत्त जोर-सी चहक-चहककर बहक-बहककर बोलों में झरते प्रणाम-सी गांवों में अधनंगे शिशु के दो हाथों के राम-राम-सी
191