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________________ एस धम्मो सनंतनो हैं, क्योंकि यह हो सकता है, यह सिर्फ ईर्ष्या का ही पूरा का पूरा फैलाव हो। क्योंकि ईर्ष्या के कारण तुम वैसी बातें देख सकते हो जो हों ही न। और मुझे लगता है संभावना यही है। क्योंकि इसको ध्यान में स्त्री का चेहरा दिखायी पड़ना, बाल संवारते दिखायी पड़ना, फिर उसका पता लगा लेना कि वह जो दिखायी पड़ती है स्त्री यही स्त्री है, फिर इसका पता लगा लेना...। तुझे, मैंने पूछा, पता कैसे चला? वह कहती है, वह आपका टेप चलाते हैं, उसमें वह भी सुनने आती है। और भी लोग आते हैं? उसने कहा, और भी लोग आते हैं। मैंने पूछा, तुझे यहां भेजा किसने? उसने कहा कि मेरे पति ने ही भेजा, उन्होंने कहा कि तू वहीं जा, मेरी समझ के बाहर है। मैं समझा-समझाकर हार गया तुझे कि कुछ नहीं है। लेकिन वह मानने को राजी नहीं है, वह प्रमाण जुटा रही है कि कुछ है। और तुम खयाल रखना, अगर तुम किसी आदमी के पीछे पड़ जाओ कि कुछ है, कुछ है, शायद तुम पैदा करवा दो। क्योंकि आदमी आदमी जैसे आदमी हैं। उत्सुकता पैदा करवा दो। शायद यह पत्नी इतना परेशान करने लगे चौबीस घंटे उनको घर में कि इससे ही बचने के लिए वह उस स्त्री में उत्सुक होने लगें। ___ ईर्ष्या टूट जाए, तो शायद इसे दिखायी पड़े कि वह मेरा प्रक्षेपण था। और न भी हो प्रक्षेपण, सच भी हो, तो क्या फर्क पड़ता है! क्या लेना-देना है! वह पति की झंझट है। वह पति अपनी तकलीफ झेलेंगे। अगर उनकी उत्सुकता है तो वह खुद उस उत्सुकता का जो परिणाम होगा, भोगेंगे। मुझे क्या लेना-देना है! दुख के बाहर आदमी होना चाहे, तो कोई रोक नहीं रहा है। दुख के बाहर होना हो, तो हम हर चीज से दुख के बाहर होने का संकेत निकाल लेते हैं। ___यह मैंने तुमसे इस स्त्री की बात कही, ठीक इसके मुकाबले स्टिकलैंड गिलीलान की एक कहानी तुम्हें कहता हूं। एक आदमी की एक नन्हीं बिटिया थी—इकलौती, अत्यंत लाड़ली। वह उसी के लिए जीता था, वही उसका जीवन थी। सो जब वह बीमार पड़ी और अच्छे से अच्छे वैद्य-हकीम भी उसे अच्छा न कर सके, तो वह करीब-करीब बावला सा हो गया और उसे अच्छा करने के लिए उसने आकाश-पाताल एक कर दिया। मगर सारे प्रयत्न व्यर्थ गए, बच्ची अंततः मर गयी। पिता की मानसिक स्वस्थता नष्ट हो गयी। उसके मन में तीव्र कटुता भर गयी। उसने स्वजन, मित्र, सबसे काटकर अपने को अलग कर लिया। उसने द्वार-दरवाजे बंद कर दिए। जिन-जिन बातों में उसे रस था, उसने सब बातें छोड़ दीं। जीवन का सारा क्रम अस्तव्यस्त हो गया। मित्रों से मिलना बंद कर दिया, कामधाम बंद कर दिया, वह अपने घर में करीब-करीब कब्र की तरह घर को बना लिया, उसी में पड़ा रह गया। 184
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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