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धर्म अनुभव है
होने लगा और एक दिन मैंने ध्यान में देखा कि वह अपने बाल संवार रही है। और तब मैं पहचान गयी कि वह कौन है। वह मेरे पड़ोस में ही रहने वाले की स्त्री है। यह ध्यान से हुआ। और तब से ही मैं पीछे लग गयी कि मामला क्या है ? यह स्त्री मुझे दिखायी क्यों पड़ती है? तब धीरे-धीरे वह खोजबीन करने से पता चला कि मेरा पति उसमें उत्सुक है।
अब यह बड़े मजे की बात हो गयी, यह सब ध्यान से हुआ !
ईर्ष्या इतनी भरी है हृदय में कि तुम्हारे ध्यान में भी ईर्ष्या के ही बिंब बनेंगे। तुम्हारे ध्यान में भी परमात्मा तो नहीं आएगा, तुम्हारे ध्यान में प्रकाश तो नहीं आएगा, एक स्त्री बाल संवार रही है ! और फिर इसने खोजबीन करनी शुरू की । खोजबीन करके इसने पा भी लिया कि पति इसमें उत्सुक हैं। उत्सुक ही हैं अभी, मगर वह जली जा रही है। वह कहती है, मैं आत्महत्या कर लूंगी, यह तो मैं सोच ही नहीं सकती। दुखी होने के लिए राजी है, मरने को भी राजी है, मगर ईर्ष्या छोड़ने को राजी नहीं । अब क्या कहोगे ?
मैंने उससे कहा कि मरकर तू भूत हो जाएगी। जब तुझे ध्यान में यह स्त्री बाल संवारते दिखती है तो बड़ा खतरा है, तू मरकर भूत हो जाएगी, तू पति को भी सताएगी, इस स्त्री को भी सताएगी। उसने कहा, चाहे भूत हो जाऊं, मगर अब जी नहीं सकती। भूत होने को राजी है । मैंने उससे कहा कि भूत को मालूम है कैसी तकलीफें झेलनी पड़ती हैं? उसने कहा, कुछ भी हो। आप मुझे दुख के बाहर निकाल लें।
थोड़ा सोचो! तुम सोचते हो कोई दुख पैदा कर रहा है, एक । फिर तुम सोचते हो, कोई तुम्हें दुख के बाहर निकाल ले। और तुम यह बुनियादी बात नहीं देखते कि दुख तुम पैदा करते हो और दुख के बाहर भी तुम ही निकल सकते हो । न तो कोई पैदा कर रहा है और न कोई निकाल सकता है। तुम मालिक हो और यह गरिमा है तुम्हारी कि तुम अपने मालिक हो । यह बात बड़ी बेहूदी होती कि कोई तुम्हारे लिए दुख पैदा कर देता और तुमको दुखी होना पड़ता । और यह बात भी बड़ी अपमानजनक होती कि कोई तुम्हें दुख के बाहर निकाल लेता। क्योंकि जो तुम्हें दुख के बाहर निकालेगा, वह कभी भी तुम्हें फिर डुबकी लगवा दे सकता है।
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नहीं, तुम अपने मालिक हो। तुम्हारी स्वतंत्रता परम है। मगर तुम देखो कि सच में तुम दुख के बाहर होना चाहते हो ? और तुम्हें दिखायी पड़ जाए कि दुख के बाहर होना है, तो ईर्ष्या में छोड़ने न छोड़ने जैसा क्या है ! क्या पड़ा है ईर्ष्या में ! तुम छोड़ दोगे । पति में क्या पड़ा है, उस स्त्री में क्या पड़ा है, और पति किसी स्त्री में उत्सुक हो, इससे लेना-देना क्या है ! इससे क्या फर्क पड़ता है! सिर्फ थोड़ी सी समझ की किरण और ईर्ष्या ऐसे गिर जाती है, जैसे किसी ने पुराने वस्त्र उतारकर रख दिए, और तुम दुख के बाहर हो ।
और शायद दुख के बाहर होकर तुम्हें पता चले कि पति शायद उत्सुक भी नहीं
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