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एस धम्मो सनंतनो
होगा कि यह यह कहूंगा कि तेरी पत्नी मर गयी, बड़ा बुरा हुआ, अब दुख न करो, सब ठीक हो जाएगा, आत्मा तो मरती नहीं कुछ ऐसी बातें सोचकर आया होगा । इधर देखा तो बड़ी मुश्किल में पड़ गया, उसको तो बड़ी बेचैनी हुई। वह सज्जन तो एक खंजड़ी बजा रहे हैं एक झाड़ के नीचे बैठकर और गाना गा रहे हैं। और सुबह पत्नी को दफनाया है ! और यह सांझ - अभी पूरा दिन भी नहीं बीता है, जिस सूरज ने सुबह पत्नी को कब्र में रखे जाते देखा वह सूरज भी अभी नहीं डूबा है, अभी देर नहीं हुई है, अभी तो घाव इतना हरा है - और यह अपना पैर फैलाए एक झाड़ के नीचे खंजड़ी बजा रहे हैं !
अब सम्राट आ ही गया था, कुछ कहना भी जरूर था, उसे बेचैनी भी हुई। उसने कहा कि महाशय, दुखी न हों, इतना ही काफी है, लेकिन सुखी हों, यह जरा जरूरत से ज्यादा हो गया। दुखी न हों, ठीक। वह तो मैं भी कहने आया था कि दुखी न हों, लेकिन अब तो कोई कहने की आवश्यकता ही नहीं रही, जो मैं सोचकर आया था सब बेकार ही हो गया, लेकिन इतना जरूर कहना चाहता हूं कि दुखी न हों, इतना पर्याप्त; लेकिन सुखी हों और खंजड़ी बजाएं और गाना गाएं!
च्वांग्तसू ने कहा, क्यों नहीं ? जो भी आनंद का अवसर मिले, उसे चूकना क्यों ? अपनी पत्नी को भी मैं गाना गाकर विदा नहीं दे सकता! तो फिर किसको विदा दूंगा गाना गाकर ? और जिस स्त्री के साथ जीवनभर रहा, क्या इतना भी नहीं कर सकता कि जाते समय खंजड़ी बजाकर उसे कह सकूं कि अलविदा ! तुम कौन हो मेरे उत्सव में बाधा डालने वाले ?
सम्राट को तो समझ में ही नहीं आया कि अब वह क्या करे? बात तो च्वांग्तसू ने बड़े गजब की कही कि जिसके साथ जीवन का बहुत राग-रंग देखा; सुख-दुख, उतार-चढ़ाव देखे; जो हर घड़ी छाया की तरह मेरे पीछे रही; उसको भी विदा न दे सकूं एक गीत गाकर ! यह तो जरा अकृतज्ञता हो जाएगी। यह तो मेरा कृतज्ञभाव ! यह तो मैं सिर्फ अहोभाव प्रगट कर रहा हूं।
अगर अवसर खोजे तुम आनंद के लिए तो कभी न मिलेगा। और अगर तुम आनंदित होना जानते हो, तो हर अवसर अवसर है। हर मौसम मौसम है। हर घड़ी तुम कोई न कोई तरकीब खोज ही ले सकते हो। क्या गजब का आदमी रहा होगा च्वांग्तसू ! कैसी घड़ी में खंजड़ी बजाने की बात खोज ली ! ऐसा ही मनुष्य होना चाहिए। तो मैं तो तुमसे कहूंगा, हर घड़ी आनंद मनाओ।
'उत्सव कब उचित है ?'
हर घड़ी उत्सव उचित है। क्योंकि जब तुम उत्सव में हो, तभी तुम परमात्मा के निकट हो । और जब तुम उत्सव में सम्मिलित नहीं हो, तुम परमात्मा के बाहर हो, उत्सव में होना परमात्मा में होना है, उत्सव न होना परमात्मा के बाहर होना है। तुम्हारी मर्जी! तुम्हें अगर परमात्मा के बाहर-बाहर जीना हो, तो तुम जीओ। फिर
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