________________
धर्म अनुभव है
संताप होगा, विषाद होगा, दुख होगा, पीड़ा होगी, चिंता होगी, वह तुम्हारा चुनाव है। उत्सव बन सकती थी जो ऊर्जा, वही बनेगी चिंता, वही बनेगी विषाद। फूल बन सकती थी जो ऊर्जा, वही कांटे और शूल बनकर चुभेगी छाती में।
मगर चुनाव तुम्हारा है। तुम चाहते तो सारा जीवन उत्सव हो सकता था। होना चाहिए। उत्सव के लिए प्रतीक्षा मत करो कि कब? छोड़ो ही मत कोई अवसर। हर क्षण को उत्सव में बदल लो।
पांचवां प्रश्नः
संसार को दुखमय बनाने के पीछे राज क्या है?
पछ|ने से लगता है, जैसे किसी ने तुम्हारे लिए संसार को दुखमय बना दिया
है! किसी ने। तुमने बना लिया है, किसी ने बना नहीं दिया है। तुम्हारे हाथ में है। तुम इस ढंग से जी सकते हो कि संसार निर्वाण हो जाए और तुम इस ढंग से जी सकते हो कि निर्वाण संसार हो जाए। संसार और निर्वाण दो नहीं।
इस क्रांतिकारी उदघोष को सुनो-संसार और निर्वाण दो नहीं हैं, देखने के दो ढंग हैं। सत्य तो एक ही है। जब तुम गलत ढंग से देखते हो, तो संसार-और दुखी होते हो; जब ठीक ढंग से देखते हो, तो निर्वाण और सुखी होते हो। देखने की बात है, देखने-देखने की बात है। बस दृष्टि की ही बात है। दृष्टि ही सृष्टि है।
तो तुम अपनी आंख पर खयाल करो। तुम्हारा प्रश्न ऐसा लगता है कि संसार को दुखमय बनाने के पीछे राज क्या है—जैसे किसी ने दुखमय बना दिया है, और जरूर इसके पीछे कुछ राज होगा। संसार को दुखमय तुमने बना लिया है। और राज कुल इतना ही है कि तुम सुखी नहीं होना चाहते। . अब तुम कहोगे कि यह बात तो जंचती नहीं, क्योंकि हम सब सुखी होना चाहते हैं। तुम इस ढंग से सुखी होना चाहते हो कि उसका परिणाम दुख होता है। तुम्हारे सुखी होने की मांग में कहीं कुछ भ्रांति है। तुम्हारे सुखी होने की चेष्टा में ही दुख पैदा हो रहा है। तुम्हारे सुखी होने की दिशा ही तुमने गलत चुन ली है। सुखी होने का तुम्हारा ढंग इतना गलत है कि तुम सुखी नहीं हो पाते। और तुम्हें ढंग दिया जाता रहा है—बुद्धपुरुष आते रहे, जाते रहे, कहते रहे, उनकी तुम सुनते नहीं। तुम कहते हो, महाराज, अगर आप ज्यादा सताओगे तो हम आपकी पूजा कर लेंगे, मगर सुनेंगे नहीं। अगर आप ज्यादा शोरगुल मचाओगे तो हम मंदिर में आपकी प्रतिमा विराजमान कर देंगे, धूप-दीप जलाएंगे, मगर सुनेंगे नहीं।
क्यों? तुम्हारा दुख के साथ बहुत गठबंधन हो गया है। तुम दुख के साथ बहुत
181