SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्म अनुभव है अगर तुमने शर्त रखी कि ये शर्तें पूरी हों तब मैं आनंद मनाऊंगा – ऐसी शर्तें लोगों ने रखी हैं, इसीलिए तो दुखी हैं। वे कहते हैं, जब मेरे पास बड़ा महल होगा, तब। कि जब बैंक में मेरे पास बड़ा बैलेंस होगा, तब । कि जब दुनिया की सबसे सुंदरतम स्त्री मुझे उपलब्ध हो जाएगी, तब । कि बड़े पद पर पहुंचूंगा, तब। अभी क्या आनंद मनाऊं ! शर्तें उन्होंने इतनी बांध रखी हैं कि न वे शर्तें कभी पूरी होती हैं, न वे कभी आनंद मना पाते हैं। और ऐसा भी नहीं कि शर्तें पूरी होतीं ही नहीं, कभी-कभी शर्तें पूरी भी हो जाती हैं, लेकिन जीवनभर की दुख की आदत ! उमर खय्याम ने एक बड़ी मीठी बात कही है । उमर खय्याम ने कहा है कि हे उपदेशको, हे मंदिर के पुजारियो, मौलवी - पंडितो, तुम कहते हो, स्वर्ग में शराब के चश्मे बह रहे हैं, और यहां तुम शराब पीने नहीं देते। अभ्यास न होगा तो चश्मों का क्या करेंगे? यह बात बड़ी अर्थ की है। यहां अभ्यास तो कर लेने दो। यहां तो प्याले - -कुल्हड़ से ही पीने को मिलती है, अभ्यास तो हो जाए। नहीं तो अचानक, जरा सोचो तुम, जिंदगीभर तो यहां कभी शराबखाने न गए, और फिर एकदम स्वर्ग पहुंचे, और वहां शराब के झरने बह रहे हैं ! तुम पीओगे ? तुम न पी सकोगे। तुम निंदा से भर जाओगे। तुम कहोगे, यह पाप है। यह बात अर्थपूर्ण है। यह बात शराब के संबंध में नहीं है। यह बात जीवन के आनंद के संबंध में है । उमर खय्याम एक सूफी फकीर है। शराब से उसे क्या लेना-देना! उसने कभी जीवन में शराब पी भी नहीं है । वह नाहक बदनाम हो गया है, क्योंकि शराब की उसने बड़ी चर्चा की है। तो लोग समझे, शराब की ही चर्चा रहा है। शराब तो सिर्फ प्रतीक है मस्ती का । वह ठीक कह रहा है। अगर मस्त यहां न हुए, तो वहां कैसे मस्ती करोगे ? यहां न नाचे, तो अचानक स्वर्ग में पहुंचकर नाचोगे ? जंचेगा ही नहीं । बेहूदे लगोगे ! इधर कभी गाए नहीं, वहां एकदम गाओगे बड़ी बेसुरी आवाज निकलेगी, और लोग कहेंगे, भई शांत रहो ! स्वर्ग की शांति विघ्न न डालो। तुम तो अपना पुराना अभ्यास यहां भी जारी रखो, बना लो वही लंबी उदास सूरत, बैठ जाओ किसी झाड़ के नीचे, योगासन साधो । तुम पूछते हो, 'मनुष्य आनंद कब मनाए ?' मनुष्य आनंद ही आनंद मनाए । चलते, उठते, बैठते, सोते, खाते-पीते, सुख में और दुख में भी आनंद मनाए । सुख में तो मनाए ही, दुख में भी मनाए । जब घर में किसी का जन्म हो तब तो मनाए ही, जब घर से कोई विदा हो तब भी मनाए । जन्म में भी और मृत्यु में भी । उत्सव के लिए कोई मौका छोड़े ही न। किसी न किसी बहाने कोई न कोई उपाय खोज ले। वांग्तसू चीन का अदभुत संत हुआ। उसकी पत्नी मर गयी । तो खुद सम्राट संवेदना प्रगट करने आया। लेकिन सम्राट सोच-सोचकर आया होगा कि च्वांग्तसू जैसा विचारक, अदभुत आदमी, उससे क्या कहूंगा ? तो सब तैयार करके आया 170
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy