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एस धम्मो सनंतनो
दाता को ही डांटने लगा। उससे बोला, उल्लू के पट्टे! पहले जब मेरे पास रूबल नहीं था तो मैं तंदूरी चिकन खा नहीं सकता था। अब जब मेरे पास रूबल है, तो आप कहते हैं, मुझे तंदूरी चिकन नहीं खाना चाहिए। तो फिर मैं तंदूरी चिकन खाऊं कब? रूबल नहीं था तो खा नहीं सकता था, रूबल है तो तुम कहते, खाओ मत, क्योंकि तुम भिखारी हो, यह क्या कर रहे हो? तो मैं तंदूरी चिकन खाऊंगा कब?
मैं तुमसे कहता हूं, रूबल हो या न हो, तंदूरी चिकन खाओ। क्योंकि मैं जिस तंदूरी चिकन की बात कर रहा हूं, उसके लिए रूबल की जरूरत ही नहीं है। तुम यह पूछो ही मत कि कब? मैं जिस उत्सव की बात कर रहा हूं, उस उत्सव के लिए सब समय ठीक समय है और सब ऋतुएं ठीक ऋतुएं हैं। मैं जिस बसंत की बात कर रहा हूं, वह बारह महीने फैल सकता है। वह बारहमासी हो सकता है। मैं जिन फूलों की बात कर रहा हूं, वे हर जगह खिल सकते हैं, हर देश में खिल सकते हैं, हर परिस्थिति में खिल सकते हैं—सफलता में, असफलता में; जवानी में, बुढ़ापे में; धन में, निर्धनता में। मैं जिन फूलों की बात कर रहा हूं, वे हर जगह खिल सकते हैं, हर परिस्थिति में खिल सकते हैं। मैं शाश्वत के फूलों की बात कर रहा हूं।
अब तुम पूछते हो, 'मनुष्य आनंद कब मनाए?'
तुम्हारा क्या इरादा है! कोई दिन तय करके मनाओगे कि रविवार को मनाए, कि छुट्टी का दिन ठीक। छह दिन दुखी रहोगे, सातवें दिन अचानक आनंदित कैसे हो पाओगे? छह दिन का अभ्यास पीछा करेगा।
तुमने देखा या नहीं, छुट्टी के दिन लोग क्या करते हैं? छुट्टी के दिन लोग रोजमर्रा के काम से ज्यादा काम करते हैं। छुट्टी के दिन पत्नियां परेशान हो जाती हैं, क्योंकि पति काफी खटर-पटर मचाता घर में आकर। कहीं कार खोलकर सफाई शुरू कर देता है, कहीं रेडियो खोल लेता है, कहीं घड़ी खोल लेता है ज्यादा खटर-पटर करता है। क्योंकि छह दिन काम का अभ्यास, अचानक बेकाम कैसे रहोगे? छह दिन सोचता है कि छुट्टी का दिन आ रहा है, विश्राम करेंगे, और जब छुट्टी का दिन आता है, तो विश्राम करना कोई इतनी आसान बात तो नहीं! विश्राम तो जीवन की शैली हो तो ही कर सकते हो। वह तनाव, आदत भाग-दौड़ की, उसको बेचैनी लगती है-अब क्या करें?
तो लेकर पत्नी-बच्चों को चला, हिल स्टेशन चलो। तो कम से कम ड्राइव ही करेगा। छुट्टी के दिन जितने एक्सीडेंट होते हैं दुनिया में उतने किसी और दिन नहीं होते। और छुट्टी के दिन लोग ऐसे थके-मांदे लौटते हैं कि कम से कम दो-तीन दिन लग जाते हैं दफ्तर में उनको, जब कहीं वह फिर स्वस्थ हो पाते हैं। छुट्टी का दिन महंगा पड़ जाता है। छुट्टी मनानी कोई आसान बात तो नहीं! जब तक कि छुट्टी तुम्हारे जीवन की कला ही न हो गयी हो।
तो तुम पूछते हो, 'कब आनंद मनाएं?'
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