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धर्म अनुभव है को प्रेम करो, तुम्हारे घर एक बेटे का जन्म हो उसको प्रेम करो, और अचानक तुम पाओगे कि जिस तरफ तुम्हारे प्रेम की दृष्टि गयी, वहीं दिव्यता खड़ी हो जाती है। ___ यही तो प्रेमियों की अड़चन है। क्योंकि जहां उन्हें दिव्यता दिखायी पड़ जाती है कभी, फिर सिद्ध नहीं होती, तो बड़ी अड़चन खड़ी होती है। जिस स्त्री में तुमने दैवीय रूप देखा था या जिस पुरुष में तुमने परमात्मा की झलक पायी थी, फिर जीवन के व्यवहार में वैसी झलक खो जाती है, नहीं बचती, तो पीड़ा होती है। लगता है, धोखा दिया गया। कोई धोखा नहीं दे रहा है, सिर्फ तुम्हारे पास जो प्रेम की आंख है, अभी इतनी स्थिर नहीं है कि तुम सदा किसी व्यक्ति में परमात्मा देख सको। जब-जब तुम्हारी आंख बंद हो जाती है, परमात्मा दिखायी पड़ना बंद हो जाता है।
तो प्रेम शुरुआत में तो बड़ा दिव्य होता है-सभी प्रेम दिव्य होते हैं। फिर सभी पतित हो जाते हैं, क्योंकि आंखों की आदत नहीं है इतना खुला रहने की। जिस दिन तुम सारे जगत को प्रेम कर पाओगे, उस दिन सारे जगत में परमात्मा प्रगट हो जाएगा। ___ मैं तुमसे कहता हूं, प्रेम ही परमात्मा है।
आ गया नर जर्रे-जर्रे पर सितारे भी चमक उठे हैं कुछ और रोशनी चांद की भी बढ़ गयी है
महककर फूल इठलाए हैं कुछ और ' प्रेम की लहर के आते ही! प्रेम का झोंका आ जाए!
आ गया नूर जर्रे-जर्रे पर तो एक अदभुत प्रकाश कण-कण पर दिखायी पड़ने लगता है। तुमने प्रेमी को चलते देखा? जैसे जमीन की कशिश उस पर काम नहीं करती, जैसे वह उड़ा जाता है, जैसे उसे पंख लग गए हैं। तुमने प्रेमी की आंखें देखीं? जैसे उनमें दीए जलने लगे हैं। तुमने प्रेमी का चेहरा देखा? रोशन। कोई दिव्य आभा प्रगट होने लगती है।
आ गया नूर जर्रे-जर्रे पर सितारे भी चमक उठे हैं कुछ और रोशनी चांद की भी बढ़ गयी है महककर फूल कुछ इठलाए हैं और तुम्हारी आंख की एक जुबिश ने जिंदगी ही मेरी बदल डाली लबों से तुमने जो इकरार किया शर्म आंखों की बढ़ गयी है कुछ और जब निगाहें मिली थीं पहली बार निकलता सा लगा दिल पहलू से तुम्हारी आंखों की गहराई में
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