SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो हैं। अंधे तुम नहीं हो, तुमने आंखें बंद कर रखी हैं, या आंखों पर पर्दा डाल रखा है। __ इसलिए मैं कोई कर्म नियत नहीं करना चाहता हूं। और तुम इस दिशा में इस भांति सोचो ही मत। मैं तुम्हें मुक्ति देता हूं। तुम सिर्फ सारी शक्ति बोध पर लगा दो, ध्यान पर लगा दो। ___इसलिए न तुमसे कहता हूं शराब छोड़ो, न तुमसे कहता हूं धूम्रपान छोड़ो, न तुमसे कहता हूं यह छोड़ो, वह छोड़ो, ऐसे उठो, वैसे बैठो, यह योग करो, कुछ भी नहीं कहता हूं। कहता हूं, सारी शक्ति ध्यान पर लगा दो। क्योंकि ध्यान की चिनगारी पैदा हो जाए, तो शेष सब अपने से हो जाएगा। उस चिनगारी के बाद यह बात निश्चित है कि तुम ऐसे ही न रहोगे जैसे हो। धूम्रपान जा सकता है, मदिरापान जा सकता है, कामवासना जा सकती है; धन, लोभ, पद, सब जा सकते हैं, तुम ऐसे न रहोगे जैसे हो, यह बात पक्की है। लेकिन मैं तुमसे नहीं कहता कि तुम इन्हें बदलो। मैं तुमसे कहता हूं, तुम सिर्फ जागो, तुम्हारे जागरण के पीछे बदलाहट आती है। और तब बदलाहट में बड़ा सौंदर्य होता है। प्रयास से जो किया जाता है, कुरूप हो जाता है। क्योंकि प्रयास में जबर्दस्ती है, स्वभाव नहीं है। . तीसरा प्रश्नः आप हमेशा कहते हैं कि प्रेम ही परमात्मा है। प्रेम और परमात्मा का क्या संबंध है? में जब कहता हूं, प्रेम ही परमात्मा है, तब मैं यही कह रहा हूं कि वे दो नहीं हैं। - इसलिए संबंध की बात ही मत पूछो। संबंध तो दो में होता है। प्रेम ही परमात्मा है। प्रेम कहो या परमात्मा कहो, एक ही बात कही जाती है। और ज्यादा अच्छा होगा, तुम प्रेम ही कहो। क्योंकि परमात्मा के नाम पर इतनी घृणा फैलायी गयी है, परमात्मा के नाम पर आदमी ने इतनी हत्या की है, इतना अनाचार किया, अत्याचार किया है, इतना व्यभिचार किया है कि अब अच्छा होगा कि हम प्रेम शब्द को ही परमात्मा के सिंहासन पर पूरा विराजमान कर दें। प्रेम ही परमात्मा है, संबंध की तो पूछो मत-तुम यह पूछ रहे हो कि दोनों के बीच क्या संबंध है? तुमने दो तो मान ही लिया। नहीं, परमात्मा प्रेम से अलग कुछ भी नहीं है। जहां तुम्हारा प्रेम आया, जहां तुम्हारा प्रेम का प्रकाश पड़ा, वहीं परमात्मा प्रगट हो जाता है। इसीलिए तो तुम जिसको प्रेम करते हो, उसमें दिव्यता दिखायी पड़ने लगती है। प्रेम दिव्यता को अनावृत करता है, उघाड़ता है। तुम एक साधारण स्त्री को प्रेम करो, साधारण पुरुष 170
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy