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________________ धर्म अनुभव है है। यह सब हो रहा है। वृक्ष बड़े हो रहे हैं, नदियां बह रही हैं, पहाड़ बूढ़े हो रहे, आकाश में बादल घुमड़ रहे, बिजलियां चमक रहीं, यह सब हो रहा है। __साक्षीभाव को उपलब्ध व्यक्ति के जीवन में घटनाएं होती हैं, जैसे नदियां बहती हैं, वृक्ष बड़े होते हैं, पक्षी गीत गुनगुनाते हैं। कर्ताभाव नहीं होता। इसलिए मैंने कहा, कर्म बचता है। शुद्ध कर्म बचता है। बड़ा अनूठा कर्म बचता है, जिसमें स्वाद ही स्वाद होता है, जिसमें रस ही रस होता है। लेकिन निकलता है तुम्हारे भीतर के आनंद से। तो तुमने इससे फिर वही बात निकाल ली जो दास मलूका से लोगों ने निकाल ली है। ___ तुम पूछने लगे, 'ऐसा आपने कहा, आपके संन्यासी के लिए आप कौन सा कर्म नियत करना चाहेंगे?' तुम खुद फंसोगे, मुझको भी फंसाओगे। मैं क्यों करूं कोई कर्म नियत? परिस्थिति, समय जो अनुकूल होगा, तुम्हारे भीतर जगाएगी। परमात्मा-परिस्थिति, समय, इन सब के इकट्ठे जोड़ का नाम परमात्मा है। तुम्हारे भीतर से प्रतिसंवाद होगा। तुम्हारी चेतना से उत्तर निकलेगा। और तुम्हारा उत्तर तब कभी भी असंगत न होगा, संगत होगा। ___ अगर मैं तुम्हें कोई उत्तर दे दूं तो तुम्हारा जीवन पूरा असंगत हो जाएगा। क्योंकि तुम अपना उत्तर बांधकर चलोगे और जिंदगी किसी उत्तर से बंधी है? जिंदगी रोज बदलती जाती है। जिंदगी विराट परिवर्तन है। यह तुम्हारे हिसाब से थोड़े ही चलती है कि तुम्हारा उत्तर देखकर चलती है कि तुम्हारे पास जो उत्तर है वही प्रश्न पूछू। यह तो ऐसे प्रश्न पूछेगी जिनका उत्तर कभी तुमने सोचा भी नहीं, विचारा भी नहीं, किसी शास्त्र में नहीं है। फिर तुम क्या करोगे? फिर तुम वही उत्तर दोगे जो तुम्हारे पास है। ___ मैं वर्षों तक विश्वविद्यालय में शिक्षक था। मैं बहुत हैरान हुआ यह बात जानकर कि विद्यार्थी ऐसे प्रश्नों के उत्तर देते हैं जो कि पूछे नहीं गए। पूछा कुछ गया है, जवाब कुछ देते हैं। फिर मैंने उन विद्यार्थियों को बुला-बुलाकर पूछना शुरू किया कि मामला क्या है? उन्होंने कहा, मामला यह है कि हमें जो मालूम है वही तो हम जवाब दे सकते हैं। आप कुछ इस ढंग से पूछते हैं कि वह हमारी पकड़ के बाहर हो जाता है। तो जो हमें मालूम है, जो हमारी कंजी में दिया हआ है, वह हम दे सकते हैं जवाब। अगर तुम वही प्रश्न पूछो जो उनकी कुंजी में दिया हुआ है तो वे दोहरा देंगे तोते की तरह। अगर प्रश्न में जरा सा फर्क कर दिया, बस वे मुश्किल में पड़ गए। अपना कोई बोध तो नहीं है, कुंजियां हैं, उधार कुंजियां हैं। ___ तुम किसी तरह की कुंजी मुझसे पाने की आशा मत करो। मैं तुम्हें उधार आदमी बनाना नहीं चाहता। मैं चाहता हूं तुम जागो, तुम्हारे पास अपनी ज्योति हो, उस ज्योति में तुम देखो, उस देखने में जो तुम्हारे जीवन में घटना घटे, उसे घटने दो। इतना ही कहता हूं, अंधेरे में मत टटोलते रहो, रोशनी हो सकती है, और आंखें खुल सकती 169
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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