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________________ एस धम्मो सनंतनो बोलते रहे, समझाते रहे। प्रभु ने जो करवाया, वह किया। जो हुआ, उसे होने दिया। विराट कर्म हुआ, लेकिन कर्ता का कोई भाव नहीं था। जिस दिन मौत आयी उस दिन रोने नहीं लगे बैठकर कि अब मैं जा रहा हूं तो मेरे किए हुए काम का क्या होगा, अधूरा छूट गया। __हमेशा ही अधूरा छूटता है। जब भी तुम जाओगे, काम अधूरा छूटेगा। तुम रोओगे अगर कर्ताभाव रहा। अगर कर्ताभाव न रहा, तो जिसका काम है वह जाने। अधूरा तो अधूरा, पूरा तो पूरा, जितना करवाना था उतना ले लिया-अब किसी और से लेगा। कोई मैंने ही तो सारा ठेका नहीं लिया है, कोई और होगा जिससे यह काम आगे चलेगा। मेरे जाने के बाद भी संसार तो चलता रहेगा। तो जो अधूरा है वह पूरा होता रहेगा। फिर पूरा कब क्या होता है! सब चलता ही रहता है। यह धारा बहती ही रहती है। यह अनंत श्रृंखला है, न कोई प्रारंभ है, न कोई अंत है। ऐसी जो स्थिति है साक्षीभाव की, उसमें मैंने कहा, कर्म तो शेष रहता है। कर्म शेष रहता है, इसलिए कहा कि तुम कहीं अकर्मण्य न हो जाओ। ऐसा हुआ है। मलूकदास की प्रसिद्ध पंक्ति है न, तो कई नासमझ उसको पकड़कर बैठ गए हैं अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम। दास मलूका कह गए, सबके दाता राम।। अब यह मलूकदास की बड़ी ऊंची बात है। अजगर करै न चाकरी... सच है कि सांप कोई नौकरी नहीं करता और पंछी कोई काम नहीं करते-कहीं दफ्तर में नहीं जाते, क्लर्क नहीं, स्टेशन मास्टर नहीं, प्रोफेसर नहीं, कोई कामधाम नहीं है, फिर भी सब मस्ती से जी रहे हैं। भोजन भी मिलता है, विश्राम भी मिलता है! कहां कमी है। दास मलूका कह गए सबके दाता राम। मगर इसका मतलब यह तो नहीं है, पक्षियों को तुमने कभी सुस्त बैठे देखा? कि बैठे हों तुम्हारे साधुओं जैसे, कि मंदिरों में बैठे हैं, कि पूजा-स्थलों में बैठे हैं कि दास मलूका कह गए-पंछी सुन लें और बैठ जाएं, काम में लगे हैं। नौकरी नहीं करते हैं, यह बात सच है, मगर काम में नहीं लगे हैं, यह बात गलत है। कितना विराट कर्म चल रहा है।...सुनते हो? पक्षी अभी काम में लगे हुए हैं-बातचीत चल रही, संवाद चल रहा, चीजें लायी जा रही हैं, ले जायी जा रही हैं। हां, एक बात है, कर्ताभाव नहीं है। इसलिए चिंता नहीं है। अजगर भी सरकता है, अजगर भी फुफकारता है। लेकिन काम में नहीं लगा है। यह सब सहज हो रहा है, इसको करना नहीं पड़ता; यह स्वाभाविक है। जैसे नदी बह रही है, तो तुम यह थोड़े ही कहोगे कि नदी अपने को बहा रही है। वृक्ष बड़ा हो रहा है, तो तुम यह थोड़े ही कहोगे कि वृक्ष अपने को बड़ा कर रहा है। हो रहा 168
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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