________________
धर्म अनुभव है
नहीं कि हम चादर ओढ़कर सो जाएंगे।
इसलिए मैंने कहा, कर्ताभाव के चले जाने के बाद भी कर्म बचता है। लेकिन अब कर्म तुम्हारा नहीं होता, अब परमात्मा का होता है। अब सफलता मिलती है तो तुम उसके चरणों में चढ़ा देते हो, असफलता मिलती है तो उसके चरणों में चढ़ा देते हो। सुख या दुख जो तुम्हें मिलता है, तुम उसके चरणों में चढ़ा देते हो। तुम कहते हो, अब मैं तो हूं नहीं, तू ही है। अच्छा करवाना हो अच्छा करवा, बुरा करवाना हो बुरा करवा। यही तो सारा संदेश है कृष्ण की गीता का। वह अर्जुन को इतना ही तो समझाए कि तू निमित्तमात्र हो जा। फिर परमात्मा युद्ध करवाए तो युद्ध कर, और परमात्मा अगर संन्यास दिलवा दे और जंगल में ले जाए तो जंगल में चला जा। मगर तू अपनी तरफ से मत जा, उस पर छोड़ दे।
अर्जुन कह रहा था कि मैं चला जाऊं छोड़कर। वह कर्ता बनना चाहता था। कृष्ण ने कहा, तू कर्ताभाव छोड़, कर्ता तो वही है। अर्जुन कह रहा था, मैं इन्हें काटूं, मारूं, पाप लगेगा। पाप का भाव ही कर्ताभाव का हिस्सा है। मैं करूंगा, तो मुझे फल भोगना पड़ेगा। कृष्ण ने कहा, तू उसकी फिकर ही छोड़, जिनको मारना है वह मार ही चुका है। वे मरे हुए खड़े हैं, धक्का देने की बात है, तू निमित्त हो जा। तू नहीं होगा तो कोई और निमित्त हो जाएगा, मरेंगे तो ये। ये जो मरने को आए हैं, मरेंगे। इनकी मृत्यु तो तय हो चुकी, मैं इन्हें मरा हुआ देख रहा हूं। इसमें अनेक तो लाशें खड़ी हैं। न तुझे पाप लगने वाला है, न पुण्य। तू सिर्फ कर्ताभाव छोड़ दे। कर्ताभाव को ही पाप लगता, कर्ताभाव को ही पुण्य लगता।
इसलिए ज्ञानियों ने कहा है, पाप भी बांधता है और पुण्य भी बांधता है। शायद पाप लोहे की जंजीर जैसा है और पुण्य सोने की जंजीर जैसा है, लेकिन जंजीर तो जंजीर है, सोने की हो कि लोहे की हो, बांधती तो है ही। और सचाई तो ऐसी है कि सोने की जंजीर और भी जोर से बांधती है, क्योंकि उसे छोड़ने का मन भी नहीं होता। तुम खुद ही पकड़ लेते हो। लोहे की जंजीर तो तुम छोड़ना भी चाहते हो, सोने की जंजीर कौन छोड़ना चाहता है! सोने की जंजीर को तो लोग आभूषण कहते हैं, गहना कहते हैं, संपदा कहते हैं। ___पुण्य भी बांधता है, पाप भी बांधता है, क्योंकि मूलतः कर्ताभाव बांधता है। अगर तुम मुझसे पूछो तो मैं कहूंगा, कर्ताभाव ही एकमात्र बंधन है। कर्ताभाव संसार है। अकर्ताभाव से, साक्षीभाव से जीना संन्यास है। कर्म तो रहेगा—उठोगे, बैठोगे, भूख भी लगेगी, पानी भी पीओगे, दिन में चलोगे भी, रात सोओगे भी, सब होगा; व्यर्थ रुक जाएगा, जो तुम्हारे कर्ताभाव के कारण हो रहा था वह रुक जाएगा, लेकिन जो सार्थक है, वह चलता रहेगा। वह जो पागलपन था, वह रुक जाएगा।
बुद्ध को ज्ञान हुआ, या महावीर को ज्ञान हुआ, तो ज्ञान के बाद बैठ तो नहीं गए, गोबर-गणेश होकर बैठ तो नहीं गए। चालीस साल तक निरंतर चलते रहे,
167