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एस. धम्मो सनंतनो
बिस्तर में, इससे ही आपका जीवन नष्ट हुआ जा रहा है। रात सोने के लिए है, दिन जागने के लिए है, दिन श्रम करने के लिए है, आप छह बजे उठे।
उस रईस ने क्या किया, पता है ? उसने कहा, ठीक, इसमें कौन सी अड़चन है! और उसकी जिंदगी में उसने कोई फर्क न किया, उसने सिर्फ अपने नौकरों को कह दिया कि जब भी मैं उलूं, घड़ी में छह बजा देना। बात खतम हो गयी। नियम पूरा हो गया। जब भी मैं उलूं, घड़ी में छह बजा देना।
नियम के साथ तो रास्ता है। नियम के साथ तो बेईमानी की जा सकती है, सिर्फ बोध के साथ बेईमानी नहीं हो सकती। नियम से तो तरकीब निकल आती है। तुम जानते हो सरकार कितने नियम बनाती है, और तुम्हारा वकील उसमें से रास्ता निकाल देता है। तुम भी रास्ता निकाल लेते हो। दुनिया की कोई सरकार अभी तक इस तरह के नियम महीं बना सकी जिनमें से रास्ता न निकाला जा सकता हो। कितनी व्यवस्था करती है, एक-एक बात को कहने में पूरा-पूरा पेज लगा देते हैं कानूनविद, सब तरह की शर्तबंदी करते हैं, सब तरह के छेद रोकने की कोशिश करते हैं, कहीं से कोई तरकीब न निकाल ले, फिर भी तरकीब निकल आती है। .
धर्म नियम नहीं है, धर्म बोध है। क्योंकि बोध से ही सिर्फ-फिर तुम तरकीब न निकाल पाओगे। निकालने की जरूरत ही न रह जाएगी। अब मैंने जो कहा था वह कुछ और था, तुमने जो समझा वह कुछ और है।
‘कर्ताभाव के जाने के बाद भी कर्म बचता है।'
निश्चित। मैंने इसलिए ऐसा कहा कि कर्ताभाव के जाने के बाद तुम यह मत समझ लेना कि अब चादर ओढ़कर पड़ रहना है, क्योंकि अब तो कर्ताभाव चला गया तो अब हम क्यों करें!
ऐसे बहुत से आलसी इस देश में हैं जो सोचते हैं कि अब कर्ता ही भाव नहीं रहा तो अब हम क्यों करें, हम तो परमहंस हो गए। अब वे बैठे हैं, अब वे कहते हैं, परमात्मा करेगा। जब परमात्मा ही करने वाला है तो हम क्यों करें। उन्होंने बात में से कुछ और ही बात निकाल ली। उन्होंने कर्ताभाव नहीं छोड़ा, कर्म छोड़ दिया। कर्ताभाव छोड़ा हो तो कर्म छोड़ने की जरूरत नहीं, तुम परमात्मा के उपकरण हो गए। परमात्मा करेगा तो तुमसे ही। उसके पास अपने तो कोई हाथ नहीं हैं, तुम्हारे ही हाथ हैं। परमात्मा जो कुछ करेगा, करेगा तो तुमसे ही।
तो अगर तुम कर्म छोड़कर बैठ गए तो तुमने कर्ताभाव नहीं छोड़ा। कर्ताभाव छोड़ा होता तो तुम उपकरण बन जाते, निमित्तमात्र बन जाते; तुम कहते, अब जो तुझे करवाना हो, तू करवा। जहां ले जाना हो, ले जा। जो तेरी मर्जी, हम तेरे साथ चलेंगे। हम तेरी रौ में बहेंगे, तेरी धारा हमारी धारा होगी, अब हम लड़ेंगे नहीं। अब हमारा अपना निजी न कोई लक्ष्य है, न कोई गंतव्य है। तू डुबा दे, तो वही किनारा। तू उबार ले तो ठीक, तू डुबा दे तो ठीक। हम हर हाल राजी होंगे। मगर इसका यह मतलब
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