SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो बिस्तर के नीचे घोड़े की जीन इत्यादि पड़ी थी और घोड़ा खाओगे तो पेट में दर्द होगा। वह आदमी तो बहुत हैरान हुआ कि वैद्य तो बहुत देखे, मगर आप बड़े अदभुत वैद्य हैं, घोड़ा खा गया। ___ जो एक परिस्थिति में सही होगा, दूसरी परिस्थिति में सही नहीं रह जाएगा। जो एक क्षण में उचित होगा, दूसरे क्षण में अनुचित हो सकता है। बोध चाहिए! ताकि उस क्षण में तुम तय कर सको, तय करने की भी जरूरत न पड़े, उस क्षण में तुम देख सको कि क्या ठीक है और वही तुम्हारे जीवन से हो। ' तो मैं तुम्हें नियत कर्म नहीं बताता, सिर्फ एक ही बात पर मेरा जोर है कि तुम थोड़ा जागरण सीखो। वह हर जगह काम आएगा, हर परिस्थिति में काम आएगा। बजाय इसके कि मैं तुम्हें एक-एक परिस्थिति के लिए कर्म समझाऊं, यह ज्यादा उचित है कि तुम्हें ऐसा बोध मिल जाए कि हर परिस्थिति में तुम अपना कर्म खोज लो। क्योंकि परिस्थितियां अनंत हैं। ___जीसस ने कहा है, अगर दुश्मन तुम्हारे एक गाल पर चांटा मारे तो दूसरा उसके सामने कर देना। अब यह एक नियत बात हो गयी। एक ईसाई फकीर को एक आदमी ने चांटा मार दिया। स्वभावतः उसने तत्क्षण सोचा कि क्या करने योग्य है ? जीसस ने कहा है कि दूसरा गाल सामने कर देना, उसने दूसरा गाल सामने कर दिया। वह आदमी भी अदभुत रहा होगा, वह आदमी भी कोई साधारण आदमी नहीं था, वह आदमी भी कोई मैक्यावेली या चाणक्य का शिष्य रहा होगा, उसने दूसरे गाल पर और दुगुनी ताकत से चांटा जड़ दिया। फकीर ने तो सोचा था कि जीसस ने कहा है कि जब तुम एक गाल पर कोई मारेगा और दूसरा उसके सामने करोगे, तो उसे अपनी भूल समझ में आएगी कि किस साधु पुरुष को मार दिया। लेकिन इसके लिए साधु पुरुष चाहिए, समझने के लिए। अब यह आदमी ऐसा था, इसने कहा यह तो और ही अच्छा रहा, उसने एक दूसरा भी जोर से जड़ दिया। बस जैसे ही दूसरा चांटा जड़ा कि वह फकीर छलांग लगाकर उसके ऊपर टूट पड़ा, उसकी छाती पर बैठ गया और लगा उसे मारने। वह आदमी भी थोड़ा चौंका। उसने कहा, भाई यह क्या करते हो, ईसाई होकर! और जीसस ने कहा है कि एक गाल पर जो चांटा मारे, दूसरा सामने कर देना, तुम यह क्या करते हो! तो उसने कहा कि एक गाल था, तुमने उस पर चांटा मार लिया, जीसस का वचन है कि दूसरा सामने कर देना, अब तीसरा तो कोई गाल है नहीं! इसके आगे वचन समाप्त हो जाता है, अब मैं अपने हिसाब से चलूंगा। कोई वचन सदा साथ नहीं चल सकता। एक सीमा आएगी जहां वचन समाप्त हो जाएगा। मैं तुम्हें प्रतिपल के लिए नियत कर्म कैसे दे सकता हूं? चौबीस घंटे में हजारों स्थितियां हैं। 164
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy