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धर्म अनुभव है अपने ढंग से कब जीओगे? संन्यास का अर्थ ही होता है कि तुमने अब घोषणा की कि अब मैं उधार न जीयूंगा, नगद जीयूंगा। तुमने घोषणा की कि अब मैं अपने ढंग से जीयूंगा, चाहे जो परिणाम हो। स्वतंत्रता अब नहीं खोऊंगा, अब गुलामी के और सूत्र नहीं खोजूंगा। ___ मैं यहां तुम्हें स्वतंत्रता देने को हूं, तुम्हारा कर्म नियत करने को नहीं। मैं कौन हूं तुम्हारा कर्म नियत करूं! और कर्म नियत किया कैसे जा सकता है। परिस्थिति तय करेगी कि क्या कर्म उचित है। कोई कर्म अपने आप में उचित नहीं होता। जो कर्म आज उचित है, कल दूसरी परिस्थिति में अनुचित हो सकता है। जो दवा एक मरीज के काम की है, दूसरे मरीज के काम की न हो। ___ तुमने कहानी सुनी न! एक सूफी कहानी है। एक वैद्य बढ़ा हो गया। तो उसने अपने बेटे से कहा कि अब मैं बूढ़ा हो गया हूं, अब तू मेरी कला सीख ले, अब मैं ज्यादा दिन का मेहमान नहीं हूं; खूब गुलछर्रे कर लिए, अब मैं मर जाऊंगा तो तू भूखा मरेगा। अब तू चल मेरे साथ, मरीजों को देख और समझने की कोशिश कर; इस शास्त्र को समझ ले। दो-चार साल जीयूंगा, उस बीच तू कम से कम इस योग्य हो जा कि अपनी रोटी-रोजी कमा सके। तो बेटा बाप के साथ गया। अब तक तो कभी उसने फिकर न की थी, यह बात उसको भी खयाल में आयी कि बाप कब तक साथ देगा, उसके हाथ-पैर कंपने लगे हैं, बाप बूढ़ा हो गया है, तो वह गया। बाप ने कहा कि तू ठीक से देख, जो-जो मैं करता हूं उस पर ध्यान रख।
एक मरीज को देखा, नब्ज पकड़ी उसकी, नब्ज देखी, उसकी जीभ देखी और फिर कहा कि मालूम होता है तुमने ज्यादा आम खाए हैं। उसी की वजह से तुम्हारे पेट में तकलीफ है। बेटा तो बड़ा चकित हुआ कि चमत्कार! नब्ज देखकर कैसे पता चला कि ज्यादा आम खाए हैं? रास्ते में पूछने लगा कि पिताजी, और तो सब ठीक, नब्ज देखकर कैसे पता चला? अब आप मुझे समझा दें, क्योंकि आपने कहा, सब सीखना है। उसने कहा, नब्ज देखकर पता नहीं चला, और भी चीजें देखनी पड़ती • हैं। मैंने झांककर देखा, उसकी पलंग के नीचे आम की गुठलियां पड़ी हैं, ढेर लगा है। सिर्फ इतने ही से थोड़े काम चलता है, नब्ज तो देखनी पड़ती है, मगर और चीजें भी देखनी पड़ती हैं। उसने कहा, अब समझ गया।
बाप दूसरे दिन किसी मरीज को देखने गया था। कोई आदमी बुलाने आया तो उसने कहा, मैं आता हूं। पिता तो बाहर गए हैं, लेकिन अब मैं भी काफी समझ गया हूं। वह गया।
उसने नब्ज पर हाथ रखा, नब्ज तो उसे कुछ मालूम भी नहीं थी कैसे देखी जाती है, नब्ज पर हाथ पड़ा भी कि नहीं यह भी उसे पक्का नहीं समझ में आया, ज्यादा नजर तो बिस्तर के नीचे लगी थी उसकी कि कहां क्या पड़ा है ? बिस्तर के नीचे उसने देखा; समझ गया। उसने कहा कि देखो जी, तुम अपना घोड़ा खा गए—क्योंकि
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