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________________ धर्म अनुभव है है कि तुम कभी जागोगे। बुद्धि चलती दूसरों की बनायी हुई लकीर पर। और सत्य पर पहुंचने का यह कोई मार्ग ही नहीं। सत्य पर तो कभी तम लीक पर चलकर पहंच ही नहीं सकते। लीक का अर्थ ही होता है, मुर्दा रास्ता। जो रास्ता ही मर गया, उससे जीवित सत्य तक नहीं पहुंचा जा सकता। __जिंदा रास्ता कैसा होता है? जिंदा रास्ता होता, अपने ही पैर से चलकर बनाना पड़ता है। जितना चलते हो, उतना ही बनता है। जितना अनुभव करते हो, उतना ही करीब पहुंचते हो। दूसरों के पीछे चलते रहे, तो बुद्धिवाद। हिंदू हो, मुसलमान हो, ईसाई हो, जैन हो, तो बुद्धिवाद। धार्मिक हो अगर, तब कुछ बात होनी शुरू हुई। और धर्म का क्या लेना-देना जैन से, हिंदू से, बौद्ध से, ईसाई से। धर्म का कोई संबंध नहीं। धर्म अनुभव है। जैसे प्रकाश आंख का अनुभव है, वैसा धर्म भीतर की आंख का अनुभव है। ____तो भीतर की आंख को खोलने में लगो। बैठे-बैठे विचार ही करके जीवन को मत गंवाते रहना। न मालूम कितने जन्मों से तुम विचार कर रहे हो, न मालूम कितने जीवन तुमने विचार में गंवा दिए। बैठना अब तुम्हारी आदत हो गयी, अब तुम चलते ही नहीं। अब तुम सोचते ही रहते हो। उठो और चलो। वादों की राख को झड़ा दो, ताकि तुम्हारे भीतर का अंगारा प्रगट हो सके। और सत्य का अंगारा तुम्हारे भीतर पड़ा है, राख तुमने बाहर से इकट्ठी कर ली है-शास्त्रों की, सिद्धांतों की राख तुम बाहर से इकट्ठा कर लिए हो। इसमें मत परेशान होओ। दूसरा प्रश्नः कर्ताभाव के जाने के बाद भी कर्म बचता है, ऐसा आपने कहा। आपके संन्यासी के लिए आप कौन सा कर्म नियत करना चाहेंगे? त म ने कुछ तय कर रखा है कि तुम कभी अपने व्यक्तित्व की घोषणा न करोगे। तुमने तय ही कर रखा है कि तुम सदा कार्बन कापी रहोगे, कभी असली आदमी न बनोगे। तम सदा चाहते हो, कोई नियत कर दे कि तुम क्या करो। कोई बता दे कि ऐसे उठो, ऐसे बैठो, यह खाओ, यह पीओ। तुम अपने मालिक नहीं होना चाहते। गुलामी तुम्हारे खून में उतर गयी है। मैंने कहा कि कर्ताभाव के जाने के बाद भी कर्म बचता है, तुम्हें उसी में सहारा मिल गया। वहां कोई जगह नहीं सहारे की! तुमने वहीं रास्ता खोज लिया गुलामी 161
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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