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एस धम्मो सनंतनो
वह अनुभव बुद्धत्व है।
बुद्धि उधार, तो बुद्धिवाद। बुद्धि अपनी, निज की, अपने अनुभव में जड़ें जमाए हुए, तो बुद्धत्व। बुद्धि शब्द बड़ा अदभुत है। बुद्धि गिरती है तो बुद्धिवाद। बुद्धि उठती है तो बुद्धत्व। बुद्धि जब झूठ के जाल में पड़ जाती है तो बुद्धिवाद। और बुद्धि में जब सत्य का आविर्भाव होता है तो बुद्धत्व। दोनों ही बुद्धि के काम हैं।
मैं बुद्धि का विरोधी नहीं हूं, बुद्धिवाद का निश्चित विरोधी हूं। मैं कहता हूं, स्वाद लो, पाकशास्त्र पढ़ने से कुछ भी न होगा; न भूख मिटेगी, न पोषण उपलब्ध होगा। भोजन करो, भोजन तैयार करो। रूखी-सूखी रोटी भी बेहतर है पाकशास्त्र में लिखी हुई विधियों के मुकाबले, चाहे वे विधियां कितने ही स्वादिष्ट भोजनों के संबंध में क्यों न हों। मगर वे विधियां विधियां हैं, उन्हें तुम न खा सकते, न तुम पी सकते। उनको ही तुम जीवम की संपदा मत मान लेना। इसलिए मैं कहता हूं कि बुद्धिवाद से सावधान होना जरूरी है। ___और तुम कितना ही प्रकाश का विचार कर-करके धारणा बना लो, भीतर तुम्हारे कोई कहता ही रहेगा, यह धारणा मात्र है, तुमने जाना कहां? अभी तुमने जाना कहां? अभी तुमने जीया कहां? अभी आंख तो है ही नहीं, अंधेरे में टटोल रहे हो।
बुद्धिवाद ऐसा ही है, जैसे हमारी कहावत है-अंधे को अंधेरे में बड़ी दूर की सूझी। एक तो अंधा, फिर ऊपर से अंधेरा, और फिर दूर की सूझी। पास का भी दिखायी नहीं पड़ता!
जिंदगी जैसे बने जीना हकीकत है
और बाकी सब किताबों की नसीहत है रास्ते जितने बने जिद ने बनाए लीक तो आखिर बुजुर्गों की वसीयत है ओढ़ना बेहद जरूरी है नकाबों को आदमी की चाह नंगी है मुसीबत है एक अदना आदमी भी बहुत कर लेता ऐन मौके पर अड़ी अफसोस इज्जत है तर्क ने कितना बदल डाला सचाई को
पर नहीं एहसास मर पाया गनीमत है तर्क तो बहुत झूठे दिखावे, धारणाएं, मान्यताएं, खड़ी कर देता है।
तर्क ने कितना बदल डाला सचाई को
पर नहीं एहसास मर पाया गनीमत है . पर एक ही बात अच्छी है कि लाख तुम बुद्धिवादी हो.जाओ, तुम्हारे भीतर कोई कहता ही रहेगा-ये सब बातचीत, ये सब विचारजाल, ये सब तर्कजाल; अनुभव कहां है? वह एहसास मरेगा नहीं। उसी अहसास के आधार पर आशा की जा सकती
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