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________________ धर्म अनुभव है पहला प्रश्न: .. आप बुद्धिवाद से बचने को क्यों कहते हैं? ता कि तुम बुद्धिमान हो सको। ताकि कभी तुम बुद्ध भी हो सको। -बुद्धिवाद झूठी बुद्धिमत्ता है। बुद्धिवाद वस्तुतः तुम्हारे भीतर छिपे हुए चैतन्य का जागरण नहीं, सिर्फ उधार है। बुद्धिवाद है दूसरों के विचारों को अपना मान लेना। बुद्धिवाद है, जो तुम नहीं जानते हो, उसके संबंध में कुछ धारणाएं केवल विचार करके तय कर लेना। जैसे अंधा आदमी प्रकाश के संबंध के कोई धारणा बना ले। वह धारणा होगी बुद्धिवाद। सोचे, सुने, दूसरों ने जो गीत गाए प्रकाश के उनका संग्रह करे, अनेकों से पूछे और प्रकाश के संबंध में जो भी पता चल सके उस सबके आधार पर कोई धारणा बना ले, अनुभव तो अंधे को प्रकाश का नहीं है, आंख तो उसके पास नहीं है, तो प्रकाश की वह जो भी धारणा बनाएगा वह बुद्धिवाद होगी। वह केवल बुद्धि का ही खेल है। वह वाद मात्र है। अगर वह आदमी सच में प्रकाश में उत्सुक है तो इस धोखे में पड़ेगा नहीं। बजाय प्रकाश के संबंध में शास्त्र पढ़ने के, आंखों की चिकित्सा करवाएगा। आंखों की चिकित्सा हो जाए तो प्रकाश का अनुभव होगा। वह अनुभव बुद्धिवाद नहीं है, 159
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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