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तुम तुम हो आदमी बड़ा अजीब है। आदमी निंदा के रस में बड़ा डूबा है। तुम कोई न कोई बहाना निंदा करने का खोज ही लोगे। अब कोई चुप बैठा है तो निंदा। क्योंकि बोलते क्यों नहीं? कोई बोल रहा है तो निंदा। क्योंकि ज्यादा बोल रहा है। कोई अल्प बोल रहा है तो निंदा। क्योंकि समझाकर नहीं बोल रहा है।
तुमने कहानी सुनी? एक आदमी अपनी पत्नी के साथ अपने गधे को लेकर कहीं जा रहा था। राह में कुछ लोग मिले। दोनों पैदल चल रहे थे, क्योंकि दो गधे थे नहीं, एक गधा था। और गधा कमजोर था और दो को सम्हाल नहीं सकता था। उन आदमियों ने कहा, हद्द के मूरख मालूम होते हो, गधे को किसलिए लिए हो,
और बैठते क्यों नहीं। यह गधे को काहे के लिए चल रहे हो? यात्रा पर जा रहे हो, गधे पर बैठो। तो उस आदमी ने कहा कि मूढ़ बनने से तो यही बेहतर है, गधे पर बैठ जाएं; तो वह गधे पर बैठ गया, पत्नी उसकी नीचे साथ-साथ चलने लगी।
दूसरी भीड़ मिली, उन्होंने कहा, हद्द हो गयी, यह मूरख देखो, पत्नी को चलवा रहा है पैदल, खुद गधे पर बैठे हैं! अरे मर्द बच्चा होकर चलता नहीं है नीचे! स्त्री को ऊपर बिठा! उसने कहा, यह बात भी ठीक है। तो वह नीचे चलने लगा, स्त्री को ऊपर बिठा दिया।
फिर कछ लोग मिले. उन्होंने कहा, यह देखो मजा! आ गया कलियग, स्त्री गधे पर बैठी है, पति नीचे चल रहा है! अरे, पति परमात्मा है! तो उन्होंने कहा, अब क्या करना, बड़ी मुसीबत; तो कहा, दोनों ही बैठ जाओ। तो दोनों गधे पर बैठ गए। - थोड़ी देर बाद फिर लोग मिले, उन्होंने कहा, देखो मार डालोगे गधे को; तुम गधे मालूम होते हो, गधे की जान निकली जा रही है, कमर झुकी जा रही है, दो-दो चढ़े बैठे हो! शरम नहीं आती? आखिर पशुओं में भी प्राण हैं! ____तो उन्होंने कहा, अब क्या, करना क्या! तो उन्होंने कहा, अब एक ही उपाय बचा है कि हम गधे को लेकर चलें, क्योंकि और तो सब उपाय कर देखे। तो एक रस्सी में गधे को बांधकर, उसकी टांगों में रस्सी डालकर, डंडा पिरोकर कंधे पर . रखकर दोनों चलें।
____ थोड़ी दूर गए थे कि फिर लोग मिल गए। उन्होंने कहा, यह क्या कर रहे हो? होश है? हमने आदमी देखे गधे पर चढ़े, मगर गधा आदमी पर चढ़ा नहीं देखा, तुम कर क्या रहे हो? ___ यह पुरानी पंचतंत्र की कथा है। मगर सार्थक है। ऐसी ही दशा है। यहां अगर तुम लोगों की मानकर चलते रहो तो तुम जीवन में कभी भी थिर न हो सकोगे। चुप हुए तो लोग निंदा करेंगे, बोले तो निंदा करेंगे। कुछ भी करो, लोग निंदा करेंगे।
इस सूत्र का अर्थ क्या है ? इस सूत्र का अर्थ है कि निंदा का रस जिसको लेना है, वह कारण खोज लेगा। इसलिए तुम निंदा करने वालों की चिंता मत करना।
इसलिए बुद्ध कहते हैं, मूढ़ क्या कहते हैं, इस पर ध्यान देने की जरूरत भी नहीं
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