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एस धम्मो सनंतनो
है। मूढ़ तो मूढ़ता की बातें कहते रहेंगे। तुम तो वही करना जो तुम्हारी प्रज्ञा तुम्हें करने को कहे। तुम्हें अगर चुप बैठना ठीक लगे तो चुप रहना, चाहे लोग कुछ भी कहें। तुम्हें बोलना ठीक लगे तो बोलना, चाहे लोग कुछ भी कहें। तुम्हें अल्पभाषण ठीक लगे तो अल्पभाषण करना, और तुम्हें धारा बहानी हो बाहर की तो धारा बहाना। तुम लोगों की चिंता मत लेना कि लोग क्या कहते हैं।
तुम अपने जीवन के मालिक हो। तुम अपने जीवन को अपने ढंग से जीना। तुम तुम हो, और तुम इसकी फिकर मत करना कि लोगों का मत क्या है। मत की फिकर की, तो तुम्हें वे पागल बनाकर छोड़ेंगे। ____ जिसने लोगों के मत की फिकर की, वह दो कौड़ी का होकर मरता है। लोगों के मतों की फिकर ही मत करना। तुम अपने भीतर की शांति से, अपने भीतर के आनंद से, अपने भीतर के बोध से जीना। जो तुम्हें ठीक लगता हो, उसे करना। और उसे रोज-रोज बदलना भी मत। __ अगर बदलना भी कभी पड़े तो अपने ही भीतर के बोध से बदलना, लोगों के बोध के कारण नहीं। लोग क्या कहते हैं, इस चिंता में मत पड़ना। तो ही तुम कहीं पहुंच पाओगे। नहीं तो तुम कहीं भी न पहुंच पाओगे।
तुम दक्षिण गए, लोग कहेंगे, कहां जा रहे हो, दक्षिण में क्या रखा है? तुम उत्तर गए, लोग मिल जाएंगे, कहेंगे, उत्तर में क्या रखा है, कहां जा रहे हो? तुम पश्चिम जाओ तो लोग मिल जाएंगे, पूरब जाओ तो लोग मिल जाएंगे। सब दिशाओं में लोग हैं, और सब दिशाओं के पक्षपाती और सब दिशाओं के खिलाफ कोई न कोई मिल जाएगा। तुम्हें कुछ भी न करने देंगे लोग।
तुम्हें अगर जीवन में कुछ पाना हो, कोई सिद्धि, कोई उपलब्धि, अगर जीवन के रस से तुम्हें कुछ निचोड़ना हो, कोई सुगंध, तो तुम अपनी धुन में रमे रहना। एक बात इस सूत्र से निकलती है। ___और दूसरी बात–कि दूसरे क्या कर रहे हैं, इसका तुम निर्णय मत करना। तुम इस निंदा में मत पड़ना कि वे ठीक कर रहे हैं कि गलत कर रहे हैं, कौन जाने! वे जानें, उनका जानें। न तो तुम दूसरों को बाधा देने देना अपने काम में, और न दूसरों के काम में बाधा देना। दुनिया काफी सुंदर हो सकती है, अगर लोग एक-दूसरे के कामों में बाधा न दें, मंतव्य न दें, निर्णय न दें।
प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं होने का अधिकार है। और प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जीवन-दिशा खोजने का जन्मसिद्ध अधिकार है। होना चाहिए।
तुम दोनों बातों का स्मरण रखना। न तो दूसरे पर बाधा देना कि तुम क्या कर रहे हो, कैसा कर रहे हो, तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए—तुम किसी के नियंता नहीं हो, मालिक नहीं हो। उसे अपने ढंग से जीने दो, उसे परमात्मा को अपने ढंग से खोजने दो। और न तुम किसी को अपना मालिक बनाना। कोई तुम्हारा मालिक नहीं है।
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