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________________ एस धम्मो सनंतनो इतना तो श्रम उठाया कि कहा कि सब पाखंडी। जरूरी है कि इसको जाकर कहा जाए कि सब पाखंडी नहीं हैं। जरूरी है कि इसे जगाया जाए। यह जाग सकती है। एक यहूदी फकीर ने किताब लिखी और जो यहूदियों का सबसे बड़ा धर्मगुरु था उसके पास भेजी। जिसके हाथ भेजी, उससे कहा, एक बात खयाल रखना, वह जो भी कहे, खयाल रखना और आकर मुझे बता देना। __वह युवक गया किताब लेकर। वह फकीर की किताब थी, फकीर से धर्मगुरु नाराज था-धर्मगुरु फकीरों से सदा नाराज रहे। उस धर्मगुरु ने जैसे ही देखा कि किताब फकीर की है, उसने उसे उठाकर दरवाजे के बाहर फेंक दिया। उसने कहा, हटाओ, इस किताब को भीतर मत लाओ, क्या मेरे घर को अपवित्र करना है? लेकिन उस धर्मगुरु की पत्नी ने कहा, ऐसी भी क्या बात, हजारों किताबें अपने घर में हैं, यह भी रखी रहती। और अगर फेंकना ही था तो इस आदमी के जाने के बाद फेंक सकते थे। नहीं पढ़ना था तो नहीं पढ़ते, कितनी किताबें पड़ी हैं जो तुमने कभी नहीं पढ़ीं, यह भी पड़ी रहती। मगर ऐसा असदव्यवहार करने की क्या जरूरत? ___ उस युवक ने यह सब बात सुनी, वह लौटा। फकीर को उसने कहा कि धर्मगुरु ने तो किताब एकदम फेंक दी, एकदम आगबबूला हो गया, मुझे ऐसा लगा कि मुझ पर हमला न कर बैठे, जैसे हाथ में अंगारा रख दिया हो। लेकिन उसकी पत्नी बड़ी भली है। उसने कहा कि ऐसा न करो, किताब रख दो घर में, इतनी किताबें हैं, न पढ़नी हो मत पढ़ना, कितनी तो हैं जो तुमने कभी नहीं पढ़ीं, और अगर फेंकना ही हो तो पीछे फेंक देना, ऐसा असदव्यवहार क्यों करते हो? वह फकीर उस युवक से बोला, नासमझ, उस धर्मगुरु को तो मैं किसी न किसी दिन बदल लूंगा, लेकिन उसकी पत्नी को बदलना असंभव है। उसकी पत्नी में उपेक्षा है। वह कहती है, पड़ी रहने दो, एक कोने में पड़ी रहेगी, क्या हर्जा है। इतनी किताबें पड़ी हैं, यह भी पड़ी रहेगी। और फेंकना हो तो पीछे फेंक देना। इतनी गरमागरमी क्या! फकीर कहने लगा, ध्यान रख, उस धर्मगुरु को तो मैं बदल लूंगा, वह तो मेरे पीछे आज नहीं कल आ जाएगा-इतनी गरमागरमी है न! इतनी गरम नाराजगी है! तो यही नाराजगी प्रेम भी बन सकती है। शत्रु मित्र बन सकता है, मित्र शत्रु बन सकते हैं। लेकिन जो तटस्थ हैं, वे न तो मित्र बनते हैं न शत्रु बनते हैं। बुद्ध उसके द्वार पर इसलिए गए। और यह अपूर्व गाथा उन्होंने कही 'जो सदा जागरूक रहते हैं और दिन-रात सीखते रहते हैं तथा निर्वाण ही जिनका एकमात्र उद्देश्य है, उनके ही आश्रव नष्ट होते हैं।' .. उनके ही पाप नष्ट होते हैं, उनका ही अंधेरा टूटता है, उनका ही अज्ञान गिरता ___ 'जो सदा जागरूक...।' 152
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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