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________________ तुम तुम हो इसलिए संन्यासी की धीरे-धीरे नींद कम होती जाती है। कम करने को मैं नहीं कहता हूं। मैं तुमसे कहता नहीं कि तुम नींद कम कर लेना। लेकिन संन्यासी की नींद धीरे-धीरे कम होती जाती है। कृष्ण तो कहते हैं कि योगी जागता ही रहता है, जब सारा संसार सोया होता है। नींद की जरूरत धीरे-धीरे कम हो जाती है। जैसे-जैसे तुम्हारे भीतर की चेतना जागरूक होने लगती है, वैसे-वैसे शरीर सो भी जाए तो भी तुम नहीं सोते हो। और आधी रात से बेहतर समय ध्यान के लिए कोई हो नहीं सकता। क्योंकि संसार का कोलाहल हट गया, उपद्रवी सब सो गए, सब राजनीतिज्ञ गहरी नींद में पड़ गए, अब न कहीं कोई चुनाव चल रहा है, न कहीं कोई उपद्रव है, न कोई शोर-शराबा है, कुछ भी नहीं है, सब सन्नाटा हो गया है। तो आधी रात से ज्यादा सुंदर कोई क्षण नहीं है। यह पृथ्वी सो जाती है। पौधे सो जाते, पक्षी सो जाते। उस सन्नाटे में जागने की बड़ी सुविधा है। तो कुछ भिक्षुओं को उसने देखा बैठे हैं, लेकिन जागे हुए हैं। कुछ धीरे-धीरे चल रहे हैं। कुछ खड़े हैं। ये क्या कर रहे हैं? इनका दिमाग खराब हो गया? संसारी जागता है, ठीक-चिंता, बेचैनी—इनको क्या हो रहा है? अरे, सब भ्रष्ट हैं! बुद्ध ने उससे कहा, तू अपने दुख से नहीं सोती थी, ये भिक्षु अपने आनंद के कारण जागते थे। तू विचारों में डूबी थी, चिंताओं में, विकारों में, ये ध्यान में डूबे थे। ध्यान में नींद कहां! नींद और नींद में भेद है, पूर्णे। - जब ध्यानी सोता है, तो भी सोता नहीं, और तुम तो जागते भी हो तो क्या खाक जागते हो। और जागरण और जागरण में भी भेद है, पूर्णे। अब तू नया जागरण सीख। आखिर बुद्ध ने इतनी करुणा क्यों की इस स्त्री पर? ऐसा इसका कुछ पुण्य तो नहीं था। निंदा ही की थी न ! प्रश्न उठेगा, क्यों बुद्ध इसके द्वार गए? क्या उस नगर में कोई और द्वार न था? लेकिन तुम्हें एक मनोविज्ञान की बात स्मरण दिला देनी जरूरी है, जिसके मन में निंदा उठी है, उससे संबंध जुड़ गया। जिसने इतना भी कहा है कि ये भिक्षु पाखंडी हैं, उसने कुछ तो रस लिया। और जिसके मन में घृणा है, उसके मन में प्रेम पैदा किया जा सकता है। लेकिन जिनके मन में घृणा भी नहीं है, उपेक्षा है, उनके मन में प्रेम कभी पैदा नहीं किया जा सकता। मैं भी तीन तरह के लोगों को जानता हूं। एक, जिनके मन में मेरे प्रति प्रेम है, स्वभावतः उनको बड़ा सहारा दिया जा सकता है। एक, जो मुझसे नाराज हैं, जिनके मन में मेरे प्रति विरोध है, घृणा है, उनको भी सम्हाला जा सकता है। और तीसरे वे, जिनको उपेक्षा है। जिनको कछ लेना-देना नहीं। उनके साथ कुछ भी नहीं किया जा सकता। बुद्ध का जाना सूचक है। इस स्त्री ने कम से कम घृणा तो जाहिर की। इसने कुछ तो किया। अगर इसने उपेक्षा की होती तो बुद्ध ने द्वार पर दस्तक न दी होती। इसने 151
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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